जैसे जैसे समय बिता जा रहा है जनता और राजनेता कोई बेचैन सा है तो कोई अपनी सियासी जमनीं ढूंढने में लगी है। कोई सदस्यता अभियान ऐसे चला रहे हैं मानो वोटरों को धार्मिक ग्रन्थों पर हाथ रख कर कसमें ले रहे हों। हर किसी का अपना अपना तरीका है, अपने आला कमान के हुक्म को धरातल पर उतारा जा रहा है। जिला में अब तक 2019 लोकसभा चुनाव के लिए पाँच राजनीतिक पार्टियां मुख्य रूप से दावेदार दिख रही है। 1 (राजद, कांग्रेस) 2 (जदयू -भाजपा) और 3 AIMIM इन सभी पार्टियों का बारी बारी पोस्टमार्टम चुनाव तक चलता रहेगा और साथ साथ इनके पिछले अच्छे बुरे कर्मों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। इस प्रकार के पोस्ट किशनगंज के जनता को पूरी तरह समर्पित होगा ताकि 2019 में सशक्त और सक्षम नेता चुना जा सके।
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#राजद - बिहार की सियासत ने राजद का एक लंबा दौड़ देखा है जिस दौड़ में कुछ जनता अपनी आजादी और आज़ाद होने का खुलेआम सबूत दे रहे थे। आज़ादी मतलब अपने अधिकार क्षेत्र को इतना बढ़ा लिया था कि विपक्षी पार्टियों ने इसे जंगल राज का नाम दे दिया। कानून भी वही था और किताबे भी वही है पर कहीं ना कहीं कानून के रखवाले कमज़ोर जरूर दिख रहे थे, जनता और जनता के प्रतिनिधि मज़बूत स्थिति में अपने शक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग कर रहे थे। राजद का सियासी दौड़ हो और स्वर्गीय तास्लिममुद्दीन साहब का नाम ना आये, तो सियासी गुफ्तगू अधूरी मानी जायेगी। गांधी तो सीमांचल के थे पर दबदबा और जनता के बीच पकड़ कुछ ऐसा था एक हुंकार रैली ने नीतीश कुमार को किशनगंज आने पर मजबूर कर दिया।
राजद खेमा में 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए ऐसी बेकरारी है, कुछ ऐसी छटपटाहट देखने को मिल रही है मानो कांग्रेस के साथ नही बल्कि अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी चल रही है। संछेप में, कहना गलत नही होगा कि अपना अपना खूंटा मज़बूत करने में लगे हुए हैं। सीमांचल में आये बाढ़ में राजद की भूमिका से पता चलता है कि ये पार्टी सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोट पे नज़र रखना जानती है जनता के दुःख दर्द के घड़ी में सहायता दूर की बात आंसू भी नहीं पोंछते, पार्टी के नेता हो या कार्यकर्ता इस प्रकार दुबक के बैठे हुए मिले थे जैसे मानो कोई आपदा आया ही नही हो।
बीजेपी और राजद में एक बुनियादी फर्क है। बीजेपी (सहयोगी पार्टी) मुसलमानों के खेलाफ, बीफ, ताजमहल, बुरका, तलाक़ , धर्म परिवर्तन इत्यादि बोल कर मुस्लिम नौजावनों को उकसाता है ताकि मुसलमानो का खून गर्म हो जाये, ये सब बोलने वाले भाजपा पार्टी के खास हिन्दू नेता या कार्यकर्ता होता है और राजद में हिन्दू के खेलाफ बोलने वाला कोई मुस्लिम नही बल्कि हिन्दू नेता होता है ताकि मुसलमानों के गर्म खून को ठंडा किया जा सके और सेकुलरिज्म का सर्टिफिकेट बरकरार रखा जा सके। वहीं अगर कोई मुस्लिम उस के सवाल का जवाब दे या दूसरे समुदाय के खेलाफ बोले तो साम्प्रदायिक होने का ठप्पा लगने में देर नही लगती है।
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#कांग्रेस - सीमांचल में खास कर किशनगंज लोकसभा क्षेत्र हो या चार विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस पार्टी की जागीर जैसा है। जिस प्रकार दक्षिण भारत में कड़ी पत्ता खाने की सभी चीजों में डाला जाता है ऐसा लगता यहाँ के लोगों के खून में रचा बसा है उसी तरह कांग्रेस पार्टी के फॉलोवर्स अपने नस्लों को ऐसे ही तरबियत देते हैं जैसे मर्दाना कमज़ोरी वाले खानदानी दवाखाना अपने घर मे कोई न कोई हकिम बनाता चला जाता है। इसी को दीवानगी कहते हैं और ऐसे अंधभक़्त दीवाने हर गली कूचे में मिल जाएंगे।
पिछले कई दशकों से किशनगंज कांग्रेस को जिताती चली आ रही है। सांसद मौलाना असरारुल हक़ कासमी साहब कांग्रेसी होने के साथ साथ अपने धर्म में एक अक़ीदे का अलम बरदार भी हैं इसलिए किशनगंज लोकसभा चुनाव में उस अक़ीदे के लगभग दो लाख लोग आँख बंद कर इन्हें वोट देते हैं। ये संभव होता है जिला में मदरसों की बिछी हुई जाल से। कुछ दिनों के लिए यही मदरसा चुनावी रणनीति का अड्डा बन जाता है।
इसलिए उम्र के हिसाब से कमज़ोर होते हुए भी हज़रत चुनाव में मज़बूत दिखने लगते हैं। शिक्षा के नाम पर 10 वर्षों तक सत्ता सुख भोगने के बाद सांसद किशनगंज को शिक्षा क्षेत्र में केराला(केरल) तो नही बना सके जिसका वो वादा किये थे पर करेला (bitter guard) जरूर बन गया। हर जलसा जुलूस, उदघाट्न का लोली पॉप,और क्षेत्र भ्रमण से साफ स्पष्ट होता है कि सांसद महोदय हैट्रिक लगा कर ही दम लेंगे।
कांग्रेस किस प्रकार की पार्टी है एक उदाहरण से समझाने का प्रयास कर रहा हूँ।
» एक चौराहा में भाजपा के वाले किसी टोपी वाले कि पिटाई कर रहे होते है।
» राजद वाले दूर से चिल्लाते हूऐ आएंगे क्यों मार रहे हो? क्या हुआ ? छोड़ दो, गुंडागर्दी करते हो, गंगा जमुना तहजीब को बिगड़ते हो ईत्यादि।
» कांग्रेस वाले दूर से खड़ा हो कर ये देखेंगे कि कौन ज्यादा मरता है जब मार खाने वाला अधमरा हो जाएंगे और राजद आ कर हल्ला करने लगेंगे तो कांग्रेसी ये कह चलते बनेंगे ये सब लफंगों की लड़ाई थी, अच्छे लोग लड़ाई नही करते चलो हम लोग माइनॉरिटी के लिए कोई स्कीम बनाते है और इस घटना को सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में दर्ज करके चुनाव में जनता को बताएंगे कि बीजेपी वालों ने कितना और क्यों पीटा था।
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#जदयू - हम तो डूबेंगे सनम तुमको ले कर डूबेंगे। यहाँ जदयू को बीजेपी ने डुबाया या बीजेपी को जदयू ने कहना बहुत मुश्किल है। मुझे तो लगता है कि यहां दोनों पार्टी के बीच नूरा कुश्ती ही चल रही है। पिछले से पिछला लोकसभा चुनाव परिणाम को देखा जाए तो गठबंधन होते हुए भी इन दोनों पार्टियों में जो भितरघात हुई थी चुनाव के बाद जनता को समझ मे आ गया था। कच्चे धागे से बने रिश्ते और बालू से बने आल बहुत दिन तक नही टिकते।आज कहने को तो बीजेपी और जदयू साथ हैं पर जिस प्रकार तैयारियां, दावेदारी, और मेंबर बनाने के बहाने वोट के लूट का खेल चल रहा है इससे तो यही लगता है ये सगाई शादी से पहले टूट जाएगी। सच तो ये है कि नेता आपस मे गठबंधन तो कर लिए है पर जनता का दिल मिलना अभी बाकी है। जिले में एक नेता अपनी जिम्मेदारी निभाने में रात दिन एक किये हुए हैं लेकिन जनता एक ऐसी प्राणी है जिसमे एहसानमंदी और एहसानफरामोशी दोनों गुण होते है। एक सच्चाई ये भी है कि जब से नीतीश कुमार जी का विलय भाजपा में हुआ है अल्पसंख्यक वोट बैंक ताश के पत्ते के तरह धराशाही हो चुका है दुबारा विश्वास जितना लगभग ना मुमकिन सा है। किशनगंज में हाल में हुए मारवाड़ी कॉलेज प्रकरण में छात्रों को जेल से ना छुड़वाना बिहार सरकार की एक बहुत बड़ी भूल थी जिसका नतीजा कहीं न कहीं जदयू को भुगतना पड़ सकता है।
राजद और जदयू के राजनीतिक दौर में एक बुनियादी फर्क हैं। राजद में जनता और जनप्रतिनिधि प्रबल हुआ करती थी जदयू में लालफीताशाही/ऑफिसरशाही सभी पर यहाँ तक कि जनप्रतिनिधियों पर हावी है।
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#भाजपा की स्थिति अभी कुछ ऐसी है जैसे एक टांग पर पानी मे खड़ा बगुला अपने शिकार (मछली) का प्रतिक्षा कर रहा हो कि सही समय और मौका देख कर चोंच मारेंगे। किशनगंज लोकसभा में अपने तीन लाख हिन्दू वोटर्स और कुछ खरीदारी के दम पर लड़ने वाली पार्टी, शेरशाहवादी वोट बैंक पर आंख गड़ाये बैठे हैं और बहुत हद तक इस समुदाय के मुख्य लोगों का भाजपा प्रत्याशी के आंगन में हाज़री देना इस बात का दलील है। सुरजापुरी समाज का इतिहास गवाह है कि कितने सस्ते दामों में हमारे नेता और जनता जनतंत्र की बाजार में बिक सकते है अथवा बिकते आ रहे हैं। हद तो यह है कि आपसी रंजिश में हर हद से गुजरने की कला खास इसी कौम में पाई जाती है उसी खुंदस में दुश्मन न जीते पर दुश्मन का बाप जीत जाए। दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु यह है और मिला जुला कर निष्कर्ष तो यही निकलता है कि गठबंधन के बावजूद भाजपा वोट का जदयू में जाना असम्भव है पर जदयू वोट को अपने तरफ खींचने में बीजेपी बहुत हद तक कामयाब होती रही है। दोनों पार्टी का मुद्दा विकास है भाजपा का एक छुपा हुआ मुद्दा हिंदुत्वा है जिस कारण वर्तमान समय मे भाजपा का विकास थोड़ा ज्यादा बड़ा है जदयू के तुलना में।
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#AIMIM - पार्टी तो AIMIM है पर कहीं न कहीं पार्टी से ज्यादा बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी मशहूर और लोकप्रिय हैं। मुझे तो कुछ वैसा ही लगता है जिस प्रकार हाजी मस्तान बगैर गोली चलाए, बगैर दंगा कराए, बगैर लोगों का खून बहाए माफिया, अंडरवर्ल्ड डॉन के नाम से पहचाने जाते है, ओवैसी का नाम किसी दंगा में है ना किसी षड्यंत्रं मे न किसी घोटाले में , हाँ जब भी बोला है बंदा खुल कर बोला है चाहे वो जनतंत्र का मंदिर लोकसभा हो या कोई मंच। ओवैसी जितना अपने हक़ के लिए बोल कर बदनाम है उतना लोग पेपर लीक में, दंगा भड़काए, कराए, संलिप्त हो, सरकारी खजाने को लुटे और लूट कर स्विस बैंक में भड़े, पनामा पेपर, पैराडाइस पेपर, में प्रत्यक्ष रूप से संलिप्त हो कर भी महात्मा, और बेदाग, और शराफत, सेकुलरिज्म का ठेकेदार बने बैठे हैं। ये हद है लोगों की दोहरी नाज़रया का। अपने राज्य में या अपने लोकसभा छेत्र में क्या किया है पता नही पर जब से सीमांचल के दल दल में कूदा है पिछले वर्ष भी 20 लाख की सहायता सामग्री बांटी थी और इस वर्ष भी जब भयावह बाढ़ आई तो 60 लाख के मेडिकल हेल्प और डॉक्टरों की टीम भेज कर लोगों की मदद किये।
ओवैसी जिस कौम, हक़, इंसाफ, शिक्षा की बात करते करते आज इतने बदनाम हो गए हैं समझ नही आ रहा है ये कौम के प्रति मुहब्बत है या पागलपन है। इल्म से लेकर दुनियावी दौलत, शोहरत किसी शाहंशा से कम नही पर न जाने जिसके लिए अपनी रातों की नींद, घर-बार छोड़ कर ये शहर, वो शहर, दर-ब-दर ठोकरें खाते फिरते हैं मजनू के तरह, ये वही कौम है जिसमे न कभी इत्तेहाद हुआ है न इत्तेफाक और खुद को सेक्युलर साबित करने के चक्कर मे कभी कांग्रेस, तो कभी जदयू, तो कभी राजद और न जाने कितने सेक्युलर पार्टी का रखैल बने फिरते हैं। फिर वही हाल होता है तवायफ के तरह सौदा तो जिस्म से जमीर तक का करते हैं पर अपनाता कोई नही है।
मुसलमानों का हाल सिर्फ सीमांचल या हिन्दुस्तान में ही नही बल्कि विश्व पटल मे मंदिर के घंटी के तरह है जब कोई मंदिर आता है बजा कर निकल जाता है।
आने वाले पोस्ट्स में 2019 के चुनाव तक पोल खोल मुहिम जारी रहेगी।
जय हिंद
लेखक Firoz Alam Ex-JNU Student