लेख- ललितेन्द्र भारतीय की कलम से
मुस्लिम आबादी बहुल बिहार का किशनगंज ज़िला सांप्रदायिक सौहार्द, आपसी प्यार और सामंजस्य के लिए देशभर में एक अलग मुकाम रखता है। यहां की धरती कभी किसी मानव सृजित त्रासदी की गवाह नहीं बनी। दो मुल्कों नेपाल और बांग्ला देश और दो राज्यों बिहार और पश्चिम बंगाल की सीमा पर बने किशनगंज ने नफरत और वैमनस्यता के विष से खुद को कभी कलंकित नहीं होने दिया। यही वजह है कि आज भी जो अधिकारी, राजनेता या आम आदमी यहां आता है, वो यहीं का होकर रह जाता है। नववर्ष (2012) के 14वें सूर्योदय को साथ ही किशनगंज जिला अपनी स्थापना के 22वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है।
कहते हैं कि प्राचीन काल में इसका नाम कृष्णगंज था, जो बाद में किशनगंज हो गया। पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश-द्वार कहा जाने वाला किशनगंज अपने द्वापरकालीन गौरवशाली इतिहास के लिए भी जगत प्रसिद्ध है। महाभारत काल में धर्म प्रेमी पांडवों को कौरवों को साथ द्युत-क्रीड़ा में शिकस्त मिली और उन्हें 13 वर्ष के वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास की सजा सुनाई गई। वनवास के कष्टकारी 13 साल गुजारने के बाद अज्ञातवास के दौरान पांडव, द्रौपदी सहित भेष बदलकर राजा विराट के यहां ठहरे थे। राजा विराट के नाम का शहर विराटनगर किशनगंज-नेपाल सीमा के निकट ही स्थित है। ऐसा माना जाता है कि किशनगंज पहले राजा विराट के शासनाधीन था। महाभारत में वर्णित पंडवों के अज्ञातावास की कुछ घटनाओं की पुष्टि किशनगंज में होती है। राजा विराट के मुख्य सेनापति कीचक ने द्रौपदी के साथ दुर्व्यवहार किया था, जिससे क्रोधित भीम ने उसका वध कर दिया था। कीचकवध नामक गांव आज भी इसकी पुष्टि करता है। इसके अलावा द्रौपदीडांगी, अर्जुनभिट्टा, नकुलभिट्टा, नटिनीशाला आदि गांव महाभारतकालीन प्रसंगों से मेल खाते हैं।
मुगल काल में इस क्षेत्र पर नवाब फकीरूद्दीन का प्रभुत्व था। नवाबी परंपरा की आखिरी कड़ी नवाब जैनुद्दीन हुसैन मिर्जा थे। लोग उन्हें मिर्जा साहब कहते थे। उनकी मृत्यु 1996 में हुई। उनकी कोठी आज भी नवाबी शान की जीती जागती मिसाल है। देश में सोनपुर के बाद दूसरा सबसे बड़ा मेला खगड़ा मेला किशनगंज में ही लगता है। एक जमाने में यहां छोटी-छोटी वस्तुओं से लेकर कुटीर उद्योग द्वारा निर्मित सामानों तथा हाथी-घोड़े आदि तक की खरीद-बिक्री होती थी। इसीलिए बड़े-बुजुर्ग आज भी इसे खगड़ा किशनगंज के नाम से जानते हैं। हालांकि आधुनिक बाजार-व्यवस्था एवं मॉल-संस्कृति की चकाचौंध से इस मेले की उपयोगिता में कुछ कमी आई है। लेकिन यह मेला आज भी पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश और नेपाल के व्यवसायियों एवं लोक-कलाकारों का संगम स्थल बना हुआ है।
किशनगंज जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर कोचाधामन प्रखंड के अंतर्गत बड़ीजान गांव में सूर्य देवता की विशाल मूर्ति हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता एवं संस्कृति की मिसाल है। कहा जाता है कि यह देश का अकेला ऐसा क्षेत्र है जहां सूर्यदेव के नाम पर ना सिर्फ सुरजापुर परगना की स्थापना हुई, बल्कि सुरजापुरी भाषा भी विकसित हुई। आज भी यहां के मूल निवासियों की मातृ भाषा सुरजापुरी ही है। बड़े उद्योंगों एवं कल कारखानों से वंचित शहर के मूल निवासी लघु एवं कुटीर उद्योग से अपनी जीविका चलाते हैं। खेती व माल ढुलाई के लिए उपयोग में आने वाली बैलगाड़ी का पहिया जिला मुख्यालय से सटे गांव चकला में बनता है, जो राज्य भर में प्रसिद्ध है। यहां की मिट्टी धान और पटसन की खेती के लिए उपयुक्त है। किशनगंज की 80फीसदी आबादी खेती पर आधारित है। मेहनती किसान एवं उर्वर जमीन के साथ स्वस्थ मौसम की बहार शहर की प्राकृतिक सुंदरता को विशिष्टता प्रदान करती है। विश्व में सर्वश्रेष्ठ किस्म की चाय के लिए प्रसिद्ध दार्जिलिंग यहां से लगभग 150 किमी दूर है। सूर्योदय की विशेष भाव-भंगिमा एवं प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण पर्यटन स्थल दार्जिलिंग का मार्ग किशनगंज से गुजरने के कारण पर्यटकों के लिए भी ये महत्वपूर्ण है। हाल के दिनों में किशनगंज में भी चाय की खेती शुरू हुई है। बिहार में किशनगंज एकमात्र शहर है जहां चाय की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु है।
विश्व में सिक्ख अल्पसंख्यक समुदाय का एकमात्र मेडिकल कॉलेज किशनगंज में ही है। इसका उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने किया था। इस कॉलेज का किशनगंज में होना इस बात का प्रमाण है कि इस शहर पर पूरी दुनिया की नज़र है। शिक्षा और स्वास्थ्य का समन्वय लिए माता गुजरी मेडिकल कॉलेज निश्चित रूप से किशनगंज का गौरव बढ़ाता है। परंपरागत शैक्षिक व्यवस्था के लिए मारवाड़ी कॉलेज, रतन काली साहा महिला कॉलेज के अलावा तकनीकी शिक्षा के लिए आईटीआई कॉलेज तौहीद ऐकेडमी ट्रस्ट द्वारा संचालित हो रहा है।
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में प्रवेश के लिए सड़क एवं रेलमार्ग का किशनगंज से होकर गुजरने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यही वजह है कि व्यावसायिक दृष्टि से किशनगंज का महत्व काफी बढ़ जाता है। नेपाल और बांग्लादेश की सीमा से सटे होने के कारण शहर की सुरक्षा का जिम्मा सीमा सुरक्षा बल उठाए हुए हैं। उनकी ऊंची-ऊंची इमारतें, केन्द्रीय विद्यालय एवं अनेक विकसित उपकरण अनायास ही महानगरीय जीवन का एहसास कराते हैं। लेकिन सुरजापुर परगना, सुरजापुर आम और सुरजपुरी भाषा इसे अलग पहचान देती है।
ऐतिहासिक धरोहर, अदभुत सामंजस्य और शांतिप्रिय मनोवृति के साथ जनमाष्टमी के अवसर पर एक नारियल को कीचड़ में रखकर कई लोगों का उस पर टूट पड़ना और उसे छीनने वाले को सम्मानित करना यहां की परंपराओं में शुमार है। फसल की तैयारी के पश्चात धाम पूजा के नाम पर एक व्यक्ति के शरीर में पूर्ण ओज का आना और मान्यतानुसार उस पर किसी देवी-देवता का आगमन लोगों की आस्था से जुड़ा है। आधुनिक तरीके से मनोरंजन के लिए वर्ष के अंतिम सप्ताह में आनंद मेला आयोजित किया जाता है। उभरते संगीत कलाकार, मेघावी छात्रों की क्विज़, हास्य कार्यक्रम, सालसा और बोसनवा नृत्य आदि नववर्ष के आगमन का स्वागत करने के लिए जनमानस में नया जोश एवं स्फूर्ति भरता है। किशनगंज राजनीतिक दृष्टि से हमेशा महत्वपूर्ण रहा है। राष्ट्रीय स्तर के कई नेता यहां से सांसद रह चुके हैं। इनमें प्रख्यात पत्रकार एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के मित्र एम.जे.अकबर भी शामिल हैं। इसके अलावा बाबरी एक्शन कमेटी में सक्रिय सैयद शहाबुद्दीन, बिहार के बीजेपी के एकमात्र मुस्लिम सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री सैयद शहनवाज हुसैन, पूर्व केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री मो.तसलीमुद्दीन शामिल हैं। शिक्षा के लिए भारतवर्ष में कई उत्कृष्ट कार्यों के लिए प्रसिद्ध मौलाना असरार-उल-हक किशनगंज के वर्तमान सांसद हैं।
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