ऐसा लगता है की बर्मा (म्यांमार) में चल रहे दंगों की लपटें भारत के उत्तरपूर्वी राज्य असम पहुँच गयी है! उत्तरपूर्व की सात बहनों वाले राज्यों की रानी कहे जाने वाले असम में पिछले करीब दो हफ़्तों से दंगे जारी हैं! असम राज्य और वहां की कांग्रेस सरकार पर वर्चस्व रखने वाले बोडो ने मुसलमानों के खिलाफ जंग छेड़ दिया जिसमे कोकराझाड़, बोंगाई गाँव और बारपेट इलाकों के पचास से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी गयी है! वहीँ दो लाख से ज्यादा लोग अपने घरों को छोड़ कर रहत शिविरों में पनाह लिए हुए हैं! अफ़सोस की बात यह है की करीब दो हफ़्तों के दंगों और मीडिया में हो रहे चर्चे के बाद केंद्र सरकार की नींद खुली है और एक पेनल का गठन किया गया है!
कोकराझार के एक गांव से जान बचाकर राहत शिविर पहुंचे अजीज उल हक ने बोडो नेताओं पर पूरे विवाद का ठीकरा फोड़ते हुए कहा, 'शुरुआत में बोडो नेताओं ने हमसे आकर कहा कि हम लोग उन जगहों पर चले जाएं, जहां हमारे समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रह रहे हैं। इसके बाद हम लोग अपने गांव के नजदीक ही एक जगह पर ठहर गए। इसके बाद हमलावरों को हमारे खाली घरों को आग लगाने का मौका मिल गया। इसके अलावा हमलावरों ने उस जगह को भी घेर लिया जहां हम लोग इकट्ठा हुए थे।'
पीड़ित जहां नेताओं को अपनी बदहाली के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री राज्य की बदहाली को हिंसा का कारण बता रहे हैं। हिंसा के पीछे क्या वजह है? इसे लेकर अलग-अलग दावे और राय सामने आ रही है। हिंसा की चार वजहें सामने आ रही हैं, जिनमें कुछ तात्कालिक हैं तो कुछ वजहें काफी पहले से समस्या बनी हुई हैं।
जो ब्यान दंगों में पीड़ित लोगों के द्वारा दिया जा रहा है वोह भारत के गणतांत्रिक संरचना के लिए शर्मनाक है! इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है की केंद्र और राज्य सरकारों ने बोडो समूह और उनके नेताओं से नजदीकी तालुक्कात होने की वजह से मुसलमानों पर हो रहे जुल्म को नजरंदाज कर दिया! जब लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए तब जाके सरकार की नींद खुली है! एक प्रशन में सबके लिए छोड़ता हूँ, क्या मुसलमानों को ऐसे ही गाजर और मुली के तरह कटा जायेगा? क्या राजनितिक पार्टियों के लिए मुसलमानों का भारत में होने सिर्फ एक वोट बैंक है?
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