सुरजापूरी, एक ऐसा शब्द जिससे किशनगंजबिहार डाट कॉम (KishanganjBihar.com) के ज्यादातर विजिटर (पाठक) वाकिफ हैं! भाषा के आधार पर नामांकित 'सुरजापूरी' शब्द का उपयोग बिहार के सीमावर्ती इलाके के चार जिलों (किशनगंज, कटिहार, अररिया और पुर्णिया) और पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले के संदर्भ में होता है! इन पांच जिलों में रहने वाले निवासी मुख्य रूप से सुरजापूरी भाषा बोलते हैं, इसलिए भोगोलिक रूप से अनौपचारिक तौर पर इस इलाके को सूरजपुर भी कहते हैं! सबसे खास बात सुरजापूरी शब्द में यह है की इस भाषा के बोलने वाले लोग कहीं न कहीं भावनात्मक रूप से इससे जुड़े होते हैं! चाहे सीमांचल हो, बिहार का कोई और जिला हो, भारत या दुनिया का कोई हिस्सा हो अगर किसी सुरजापूरी बोलने वाले को दूसरा सुरजापूरी मिल जाये या दिख जाये उसे अपने आप में खास प्रसन्नता होती है!
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलोर, चेन्नई जैसे महानगर में भी बड़ी संख्या में सुरजापूरी बोलने वाले लोग रहते हैं! क्यूंकि मैं दिल्ली के ओखला / अबुल फज़ल इलाके में पिछले आठ वर्षों से रह रहा हूँ इसलिए हर गली में सुरजापूरी बोलने वाले लोग मिल जाते हैं! ओखला / अबुल फज़ल इलाके में स्कूल और कॉलेज में पढने वाले छात्र, नौकरी पेशा, खुद का कारोबार चलने वाले या किसी कारखाने / होटल / दुकान में काम करने वाले सुरजापूरी मिल जाते हैं! इन्हीं सुर्जापुरियों में एक समूह ऐसा भी है जो की अपने सुरजापूरी होने पर गर्व करता है और अपने व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर अपने इलाके के बारे सोचता है!
चाहे सुर्जापुरियों के लिए आरक्षण हो या अलीगढ मुस्लिम विश्वद्यालय (एएमयू) का किशनगंज में कैम्पस हो या दिल्ली जैसे महानगर से जुडी कोई समस्या हो, कई समूह ऐसे मुद्दों पर बढ़ चढ़ कर काम करते हैं! अपने इलाके के बारे में सोचना और वहां के मुद्दों को लेकर संघर्ष करना बहुत अच्छी बात है और एक मनुष्य (इन्सान) का यह कर्त्तव्य भी है वरना आपके जीवन का कोई मोल नहीं है! लेकिन मेरे खुद के अनुभव से मैंने महसूस किया है की सुर्जापुरियों के बिच कहीं-न-कहीं एक दुसरे से जलन और स्वार्थी व्यक्तित्व बहुत बुरी तरह हावी है! इसलिए किसी काम या मुहीम की शुरुआत तो काफी अच्छी होती है लेकिन एक दुसरे से जलन और स्वार्थी व्यक्तित्व अच्छाई की जगह बुराई को बढ़ावा देता है!
जिस सुरजापूरी भाई के साथ आप मिलके काम करने का वचन लेते हैं, उसी सुरजापूरी भाई को अपने निजी स्वार्थ के लिए अपना दुश्मन भी बना लेते हैं और उसको बर्बाद करने का हर संभव प्रयास करते हैं! बदले की भावना और दुसरे को निचा दिखाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाये जाते हैं, चाहे उनकी निजी ज़िन्दगी की चर्चा फेसबुक या मेल चैन पर हो या किसी सभा में! आपकी हजारों अच्छाइयों को भुला के आपके ज़िन्दगी की कमजोर कड़ियों को आम लोगों जिसमे गैर सुरजापूरी भी होते हैं के सामने चर्चा का विषय बनाया जाता है! सबसे बड़ी दुःख के बात यह है की सुरजापूरी जो के अपने सच्चे और साधारण होने का दावा करते हैं, फेसबुक या मेल चैन पर झूट का सहारा लेकर अपने ही सुरजापूरी भाई का मखौल उड़ाते हैं! और सबसे बड़ी बात यह है की हालाँकि फेसबुक या मेल चैन पर झूटे (फेक) प्रोफाईल बनाया जाता है, लेकिन वह व्यक्ति सुरजापूरी होने के नाते आपसे काफी करीबी होता है और उसके विचार और लिखने के अंदाज़ से उसकी हकीक़त भी जान लेते हैं!
इस तरह की हिन भावना और कार्य से किसी की निजी ज़िन्दगी में कोई असर नहीं पड़ता, क्यूंकि फेसबुक या मेल चैन में सिर्फ दर्ज़न भर ही लोग सकिर्य होते हैं! लेकिन अगर इस मुद्दे को आप ठन्डे दिमाग से सोंचे तो लगेगा की सुरजापूरी शब्द, इस भाषा को बोलने वाले लोग और पूरा इलाका बदनाम हो रहा है! लोग हमारे सुरजापूरी होने पर ही सवाल खड़े करते है और हम हंसी के पात्र बन जाते हैं! मेरे हिसाब है सुरजापूरी इलाके की बदहाली और पिछड़ापन के पीछे सबसे बड़ी वजह भावनात्मक स्नेह (प्रेम) में कमी और एक दुसरे से जलन है चाहे वोह कारोबार को लेके हो या समाज में हैसियत या फिर अपना-अपना व्यक्तिव हो! जब तक हम इस कमी को दूर न कर लें और आपसी भाईचारगी को बढ़ावा न दें, सुर्जापुरियों की समस्यायों के लिए काम करना या संघर्ष करना बेमानी और फ़िज़ूल है!
सुरजापूरी का सही अर्थ ऐसा इलाका जो सांसारिक चकाचोंध से दूर है और इस इलाके में मानवता की प्रविर्ती वाले लोग निवास करते हैं! आज भी इस भौतिकवादी संसार में सुरजापूरी लोग एक दुसरे के दुःख दर्द में साथ देते हैं और अगर ख़ुशी का माहौल हो तो बढ़-चढ़ कर आनंद लेते हैं! लेकिन महानगरों की चकाचोंध और थोड़ी से कामयाबी मिलने के बाद ही ज्यादातर लोग अपने वास्तविकता को भूल जाते हैं और अमानवीय हरकत करते हैं! अगर हम अपने को सही तौर पर सुरजापूरी बनाने की कोशिश करेंगे तो आरक्षण का मुद्दा हो या अलीगढ मुस्लिम विश्वद्यालय (एएमयू) का किशनगंज में कैम्पस हो या और कोई मुद्दा सरे मसलों का हल आसानी से हो जायेगा! इसलिए अपने सुरजापूरी होने का अर्थ अच्छी तरह समझे, अपने को एक अच्छा इंसान बनाए और फिर सुरजापूरी से जुड़े किसी मुहीम से अपने को जोड़े, तभी आपको अपने सुरजापूरी होने पर गर्व होगा! वरना लोग ऐसे ही सुरजापूरी भाई-भाई होने के दावे का मखोल उड़ायेंगे और शायद ही आपको अपने मकसद में कामयाबी मिले!
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