Wednesday, 9 November 2016

अए किशनगंज हम तो तुझसे मोहब्बत करते हैं !!!

यह लेख (article) लिखने का दिल तो नहीं कर रहा लेकिन फिर भी लिखने के लिए मजबूर हूँ, क्योंकि कुछ ऐसा मेरे साथ घटा कि सोचा सबसे शेयर (साझा) करके बोझ हल्का कर लूँ! सच कहूँ तो जब लिखने का सोचा तो बार - बार यह बात दिमाग में आई कि व्हाट्सएप (WhatsApp) और फेसबुक (Facebook) के इस युग में ऐसे लेख को लिखने का क्या फायदा! फिर अपने दिल-व-दिमाग़ की बात मानकर मैंने यह लेख लिखना शुरू किया! पिछले हफ़्ते मैं कटिहार जिले स्तिथ सुधानी (Sudhani) के दौरे पर था जहाँ से करीब 2 किलोमीटर दूर स्थित कदमगाछी गाँव में मेरी पैदाईश हुई है! जैसे ही मैं ट्रैन से उतरा उत्साह में सुधानी स्टेशन और बाज़ार की कुछ तस्वीरें फेसबुक पर शेयर किया! आम धारणा के विपरीत मेरे पोस्ट को देखकर काफी लोग चकित हुए कि मैं किशनगंज की जगह मेरी पैदाईश कटिहार जिले के इस गाँव में हुई है! जहाँ फेसबुक पर कुछ लोगों ने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी वहीँ मैसेज बॉक्स में भी तरह - तरह से इन्कवायरी (पूछताछ) होने लगी!



फेसबुक पर कमैंट्स और मेसैज बॉक्स में पूछताछ तक बात ठीक थी लेकिन बुरा तब लगा जब कुछ नादान दोस्तों ने मेरे किशनगंज के कनेक्शन पर ही सवालिया निशान लगा दिया और अनाप - शनाप बातें लिखने लगे! हालाँकि मैंने उनको अपने स्तर पर संतुष्ट करने की कोशिश की लेकिन दुःख हुआ कि सुरजापुरी और सीमांचल छेत्र के दो जिलों किशनगंज और कटिहार से संबंध को लेकर भी लोगों में इतना मतभेद है! जहाँ एक तरफ सुरजापुरी बोलने वाले प्रमुखता से पाँच जिलों क्रमशः किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया और उत्तर दिनाजपुर (पश्चिम बंगाल) के लोग एक - समान होने की दुहाई देते हैं वहीँ दूसरी तरफ भाषा से लेकर कल्चर (संस्कृति) / रीति - रिवाज़ में विभिन्नता को लेकर तरह - तरह से आपस में छींटाकशी करते हैं! मेरे अपने अनुभव से यह लगता है कि कम-से-कम यह पाँच ज़िले अलग होकर भी एक होने के एहसास दिलाते हैं फिर किसी के किशनगंज या कटिहार का होने पर इतनी उठा - पठक क्यों?

मेरी पैदाईश सुधानी से सटे कदमगाछी गाँव में हुई थी और क्योंकि मेरे अब्बू नेहरू कॉलेज, बहादुरगंज में लेक्चरर थे इसलिए बचपन से ही इसी कस्बे में साल 1990 तक रहा! आगे चलकर 1991 की शुरुवात में अच्छी शिक्षा के मक़सद से मेरे अब्बू सपरिवार किशनगंज ज़िला मुख्यालय में शिफ्ट हो गए और हमलोग इसी जिले का होकर रह गए! हालाँकि सुधानी (कटिहार) में मैं इस दुनिया में आया, लेकिन किशनगंज ने मुझे एक पहचान दिया जिसपे मुझे काफी नाज़ है! क्योंकि  मैंने प्रतिष्ठित अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से जर्नलिज्म एंड मॉस कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएट (स्नातकोत्तर) किया है और फिर टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे मीडिया समूह में काम किया है इसलिए अलग - अलग मुद्दों पर लिखने से अपने को रोक नहीं पाता हूँ! मैं यह भी बताता चलूँ कि अब तक मैंने सैंकड़ों लेख (articles) लिखें हैं लेकिन मेरा सबसे पसंदीदा विषय किशनगंज जिले के मुद्दों को उजागर करना रहा है! चाहे वह किशनगंज की शिक्षा की चिंताजनक स्तिथि हो या लोगों की आर्थिक स्थिति या फिर अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेंटर इन सभी मुद्दों पर मैं अपने ब्लॉग KishanganjBihar.com के साथ - साथ दूसरे न्यूज़ पोर्टल और अख़बारों में कई लेख लिखे हैं! मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखे लेखों पर काफी उत्साहवर्धक फीडबैक मिलते रहे हैं जिससे मेरा हौंसला बढ़ता रहता है! वहीँ कुछ कड़वे और अप्रिय कमेंट भी अलग - अलग मुद्दों पर लोगों से मिलते हैं जिससे मैं हताश नहीं होता बल्कि उनको एक चैलेंज की तरह लेकर आगे बढ़ता हूँ! सच कहें की दिल के दो हिस्सों में कटिहार और किशनगंज रहता है, लेकिन अगर तुलना की जाए तो किशनगंज से मेरी मोहब्बत का हिस्सा थोड़ा बढ़ जायेगा इसलिए मैं कहूंगा कि "अए किशनगंज हम तो तुझसे मोहब्बत करते हैं"!

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