Wednesday 17 August 2016

एएमयू ने सुप्रीम कोर्ट में कहा अल्पसंख्यक दर्जे पर केंद्र का विरोधी रवैया विशेष राजनितिक विचारधारा से प्रेरित!

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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) ने केंद्र की मोदी सरकार के अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके आरोप लगाया है कि केंद्र विशेष विचाराधारा के तरह अपना स्टैंड बदल रही है! एएमयू की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर 80 पन्नों के काउंटर एफिडेविट में केंद्र सरकार पर निशाना साधा गया है. सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हुई इस सुनवाई में एएमयू की ओर से दाखिल जवाब में कहा गया है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने इस मामले में जो स्टैंड बदला है, वो अलग राजनीतिक विचारधारा की वजह से है! एएमयू ने कोर्ट से कहा कि केंद्र सरकार का अल्पसंख्यक दर्जा बदला जाना कहीं से भी तर्कसंगत नहीं है. सरकार का यह निर्णय पूरी तरह से अनुचित है और राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित होकर लिया गया!

वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार की ओर से दायर अर्जी में बताया गया है कि वो एएमयू को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान करार नहीं देने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ यूपीए सरकार की अपील को वापस लेना चाहती है! सुप्रीम कोर्ट में एएमयू की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि सरकार की ओर से दी जा रही दलील खारिज की जाए, जिसमें सरकार उसके अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध कर रही है! एएमयू ने कहा, "केंद्र सरकार को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त किसी भी संस्थान को टेकओवर नहीं करना चाहिए. केंद्र सरकार ने संसद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट बनाने के दौरान दिए गए सांसदों और पूर्व प्रधानमंत्री के बयान को तोड़-मरोड़ कर हलफनामे में इस्तेमाल किया है. इस मामले में कई संवैधानिक सवाल शामिल भी हैं."
इसके अलावा यूनिवर्सिटी ने कोर्ट से दरख्वास्त की है कि इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट की मदद के लिए वो किसी वरिष्ठ वकील को कोर्ट का सलाहकार नियुक्त करें! एएमयू ने कोर्ट से कहा है कि एएमयू एक पुरानी मुस्लिम यूनिवर्सिटी है और ऐसे में इसके अल्पसंख्यक संस्थान के किरदार के मुस्लिम कम्युनिटी के लिए बहुत ज्यादा मायने हैं! एएमयू ने कोर्ट से कहा है कि एएमयू एक पुरानी मुस्लिम यूनिवर्सिटी है और ऐसे में इसके अल्पसंख्यक संस्थान के किरदार के मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत ज्यादा मायने रखता है! हमारे लिए दिए गए अल्पसंख्यक दर्जे का यह मतलब कतई नहीं है कि यहां पढ़ने वाले सभी छात्र मुस्लिम ही हों. जबकि 50 फीसदी सीटें दूसरे समुदाय के छात्रों के लिए होती हैं और इसके लिए संविधान में व्यापक प्रावधान किए गए हैं! 
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