महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट बहुमुखी फायदे हैं जहाँ लोगों को बाढ़ के तांडव से राहत मिलेगी वहीँ किसानों की जमीन को सिचाईं के लिए उचित पानी मिलेगा! इस वर्ष के भयंकर बाढ़ ने फिर इस परियोजना की आवश्यकता की तरफ सबका ध्यान आकर्षित किया है! जब मैंने इस बहुचर्चित 'महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट' की जानकारी मुहैया करना शुरू किया तो कई महत्वपूर्ण तथ्य जानने को मिले और यह मालूम हुआ कि वाकई यह परियोजना सीमांचल के लिए वरदान साबित होगा! इसलिए राज्य सरकार को फ़ौरन आवश्यक कदम उठाते हुए महानंदा बेसिन परियोजना के निर्माण के लिए केंद्र सरकार से समन्वय स्थापित करना चाहिए ताकि सीमांचल को हर वर्ष बाढ़ की स्थिति से छुटकारा मिले! वही इस छेत्र में रहने वाली करीब 2 करोड़ को आबादी समझ लेना चाहिए की अगर यह परियोजना अभी नहीं शुरू होती है तो इसके बनने का सपना शायद अधूरा न रह जाये!
वर्ष 1987, 1993 के भयंकर बाढ़ और बिहार 2008 के कोसी बाढ़ के बाद बिहार राज्य के बड़े हिस्से में रहने वाले लोगों को जान-व-माल का काफी नुकसान उठाना पड़ा था! इनके अलावा भी बिहार में हर वर्ष बाढ़ की स्तिथि पैदा हो ही जाती है! लेकिन क्या करें सरकारें सिर्फ बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदा के समय ही जागती है और नए-नए वादे और परियोजनाओं की घोषणाओं के बाद सब भूल जाती है! लेकिन इस वर्ष फिलहाल पटना और आसपास के इलाकों में आई बाढ़ के साथ-साथ सीमांचल में जुलाई के महीने में आई बाढ़ ने काफी तबाही मचाई! सीमांचल के अंतर्गत आने वाले ज़िले किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा आदि की करीब 20 लाख आबादी बाढ़ की चपेट में आई और करोड़ो का नुकसान उठाना पड़ा! कई दर्जन लोगों की जान गयी और हज़ारों एक्टर में फैली फसल तबाह हो गई! बाढ़ की भारी तबाही के बाद एक बार फिर 'महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट' की चर्चा जोर - शोर से होने लगी है! जानकारों का कहना है की अगर 'महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट' को पूर्ण कर लिया जाता तो इतनी भयंकर तबाही नहीं होती!
जब मैंने इस बहुचर्चित 'महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट' की जानकारी मुहैया करना शुरू किया तो यह पता चला कि आज से करीब 10 वर्ष पूर्व 24 मई 2006 में फुलवारीशरीफ, पटना में वाटर एंड लैंड मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट (Water and Land Management Institute (WALMI) ने एक वर्कशॉप आयोजित किया था! इस एक दिवसीय वर्कशॉप का उद्देश्य नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी (NWDA) की बिहार की नदियों को जोड़ने वाली परियोजना के बारे में विचार-विमर्श करना था! उस वर्कशॉप का उद्घाटन मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने किया था और अध्यक्षता जल संसाधन मंत्री श्री रामश्रय प्रसाद सिंह ने किया था! इस वर्कशॉप में बिहार के राजनेताओं, विधायकों के अलावा जल-संसाधन और नदियों से जुड़े विशेज्ञ एवं किसानों के प्रतिनिधिगण शामिल हुए थे!
इस वर्कशॉप में यह निणर्य लिया गया था कि नहर का निर्माण करके भारत - नेपाल सीमा पर बहने वाली मेची नदी और कोसी नदी को महानंदा नदी से जोड़ दिया जायेगा! इस विशेष परियोजना के जरिये कोसी नदी के 1814 मिलियन सियूमेक अतिरिक्त पानी को 117.5 लंबे नहर का निर्माण करके नियंत्रण में लाना था ताकि बारिश के दिनों में बाढ़ जैसी स्तिथि पैदा न हो! इस परियोजना के द्वारा बाढ़ से रहत के लिए अतिरिक्त जल को नियंत्रित करने के साथ-साथ सबसे बड़ा फायदा करीब 2,10,516 हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के लिए उचित व्यवस्था करना था! करीब 2903.03 करोड़ की लागत से तैयार होने वाले महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट से पाँच जिलों की फायदा पहुंचेगा जिसमें किशनगंज, पूर्णिया, सुपौल, सहरसा और अररिया शामिल हैं!
महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट के अध्ययन से यह जानकारी सामने आई कि इस परियोजना के बहुमुखी फायदे हैं जहाँ लोगों को बाढ़ के तांडव से राहत मिलेगी वहीँ किसानों की जमीन को सिचाईं के लिए उचित पानी मिलेगा! लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि 10 वर्ष गुजर जाने के बाद भी इस परियोजना पर कोई काम नहीं हुआ है! इस वर्ष के भयंकर बाढ़ ने फिर इस परियोजना की आवश्यकता की तरफ सबका ध्यान आकर्षित किया है! इसलिए राज्य सरकार को फ़ौरन आवश्यक कदम उठाते हुए महानंदा बेसिन परियोजना के निर्माण के लिए केंद्र सरकार से समन्वय स्थापित करना चाहिए ताकि सीमांचल को हर वर्ष बाढ़ की स्थिति से छुटकारा मिले! वही इस छेत्र में रहने वाली करीब 2 करोड़ को आबादी समझ लेना चाहिए की अगर यह परियोजना अभी नहीं शुरू होती है तो इसके बनने का सपना शायद अधूरा न रह जाये!
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