अबतक मुस्लिम बहुल जिला ‘किशनगंज', को लोग भले ही कुछ और कारणों से जानते होंगे पर अब देश-विदेश के लोग यहाँ की गरीबी, आर्थिक पिछड़ापन, तंगी, मुफलिसी और बेबसी से भी जानने लगेंगे। चुनाव के समय बाहर राज्य से आने वाले मेहमानों को किशनगंज के लोग शायद ही गरीब नज़र आये पर ये बाढ़ ने बहुत करीब से गरीब और गरीबी को देखने का मौका दे दिया। चुड़ा ,गुड़, चीनी ,चावल, बिस्कुट, से भले ही दो चार दिन की चाँदनी नसीब हो जाये पर सदियों की अंधेरी रात का क्या होगा??? सरकार, नेता, ट्रस्ट , सामाजिक कार्यकर्ता आदि को कोई हल तो ढूंढना पड़ेगा। आज़ादी के 70 सालों बाद भी इस दिशा में हमारे अधिकतर नेता, व सामाजिक कार्यकर्ता सभी झुठे और धोखेबाज़ साबित हुए हैं।
रेज़ा अकादमी मुम्बई , AIMIM, कुछ उर्दू दैनिक समाचारपत्र के संपादक , रेड क्रॉस सोसाइटी, खबर सीमांचल या फिर कोई कंस्ट्रक्शन कंपनी आप सभों ने यहाँ के बाढ़ पीड़ित की मदद के लिए आगे आए आप सभी का शुक्रिया। शुक्रिया तमाम सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का भी जिन्होंने बाढ़ से प्रभावित लोगों के दर्द को समझते हुए खबर संकलन किए और अपने अपने माध्यम से सरकार से लेकर आम जन तक बात पहुँचाए।
पर नदी किनारे बसने वाले लोग और किशनगंज की गरीबी वो बेबसी, चुड़ा, गुड़, चना, दाल, चीनी, चावल, कपड़ा से खत्म नहीं होगा, बल्कि जब तक यहाँ के गरीब किसानों को अपने पैदावार का उचित मूल्य नहीं मिल जाता , मज़दूरों को उसके पसीने के हिसाब से मज़दूरी नहीं मिल जाता, और हज़ारों की संख्या में पलायन रुक नहीं जाता, तब तक ये लोग बाढ़ में डूबे हुए हैं और रहेंगे। किशनगंज से सोना और चाँदी तो लूट कर ले गए अब जो थोड़ा बचा हुआ जमीन है उस में भी पूंजीपति लोग अपने दलालों के जरिये जितना ढेल उतना खेल का फार्मूला लगा कर किसानों की जमीन मानो छीन रहे हैं। सरकार के साथ साथ हमारे तथाकथित नेताओं को सही मायने में नेता बनना पड़ेगा, बिचौलिया नहीं । वरना इस तरह की सैलाब व जलप्रलय इन लोगों के जीवन में हर साल आता है और चला जाता है।
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