Monday, 5 September 2016

शिक्षक दिवस पर मेरे ख़ास शिक्षक मेरे पिताजी प्रोफेसर मसऊद आलम की याद में!


"जहाँ जायेगा वहीँ अपनी रौशनी लुटाएगा, "जहाँ जायेगा वहीँ अपनी रौशनी लुटाएगा, 

किसी चिराग़ का अपना मकाँ नहीं होता, किसी चिराग़ का अपना मकाँ नहीं होता"।।IIII

आज देशभर में भूतपूर्व (स्वतंत्र भारत के दूसरे) राष्ट्रपति डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है! इस खास दिन को विशेष रूप से मनाने के लिए तरह - तरह कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं! खुद महामहिम भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी दिल्ली के एक स्कुल में जाकर क्लास लेते हुए छात्रों एवं शिक्षकों रूबरू हुए! क्योंकि मैं भी एक शिक्षण संस्थान दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) से जन संपर्क अधिकारी (Public Relation Officer) की तौर पर जुड़ा हूँ इसलिए शिक्षक दिवस के कार्यक्रमों का हिस्सा बनने का मौका मिला! जहाँ एक तरफ विवि के कैंपस में छात्र / छात्राएं अपने शिक्षकों के प्रति आदर प्रस्तुत कर रहे थे, वहीँ मेरे भी दिमाग में अपने स्कुल और कॉलेज के दिन ताज़ा हो गए! थोड़ी से फुर्सत से सोचना शुरू किया तो स्कूल, मारवाड़ी कॉलेज (किशनगंज) से लेकर अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) तक की पढाई में मेरी जिंदगी में खास रहे कई शिक्षकों का नाम सामने आया! फिर एक जगह आकर मेरी सोच बार - बार थम गई, और वह नाम था मेरे वालिद (पिताजी) स्वर्गीय प्रोफेसर मसऊद आलम का! मेरे पिताजी भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय (B.N.M.U) से अंगीभूत नेहरू कॉलेज, बहादुरगंज (किशनगंज) में इंग्लिश विभाग के विभागाद्यक्ष के रूप में कार्यरत थे और सर्विस के दौरान ही उनकी असामयिक मौत हो गयी थी! 



32 वर्ष के अपने कार्यकाल में उन्होंने शिक्षक होने का उत्तरदायित्व (जिम्मेवारी) बखूबी निभाया और उनके द्वारा पढाये गए सैंकड़ो विद्यार्थियों की कामयाबी के पीछे बहुत बड़ा योगदान रहा है और मुझे भी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है! मेरे लिए एक पिता होने के साथ उन्होंने मेरे लिए एक शिक्षक की तरह बचपन से लेकर मेरी सबसे उच्च क्वालिफिकेशन (योग्यता) मास्टर्स इन जर्नलिज्म एंड मॉस कम्युनिकेशन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है! बात अगर स्कुल के दिनों से शुरू करें तो वे मुझे बचपन में सबसे पहले बाँस की कमची (सरकंडे) के कलम से हैंडराइटिंग (लिखावट) की रोजाना प्रैक्टिस करवाते थे, जिससे लिखावट अच्छी हो गई! उस अच्छी लिखावट का फायदा पढाई के दौरान परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त में अहम योगदान रहा! वहीँ जब ऊँचें क्लास यानी 3 - 4 में पहुँचा तो वहाँ से लेकर इंग्लिश (English) सब्जेक्ट से जुड़े ग्रामर (grammer), कम्पोजीशन (composition), रीडिंग (reading) और राइटिंग (writing) के लिए उन्होंने 12 वीं (इंटरमीडिएट) तक काफ़ी प्रैक्टिस करवाई जिसका फायदा अब तक हो रहा है! उनके द्वारा सरल (आसान) तौर पर चार्ट (chart) के रूप में पढ़ाए हुए इंग्लिश ग्रामर आज तक दिमाग़ में ताज़ा हैं! बेसिक्स (basics) पर उनका खास ध्यान रहता था जिससे स्कूल लेवल के इम्तेहान (परीक्षा) से लेकर आगे मैट्रिकुलेशन, इंटरमीडिएट, ग्रेजुएशन और एमए मॉस कम्युनिकेशन में अच्छे मार्क्स (result) के साथ पास होने में आसानी हुई! 

जब एएमयू, अलीगढ से मीडिया की प्रोफेशनल पढाई पूरी करके आगे रोज़गार के लिए दिल्ली पहुँचा तो उनके द्वारा पढाये हुए बेसिक्स ख़ासकर अंग्रेजी (English) काफी मददग़ार साबित हुई! लिखने के साथ-साथ अच्छी अंग्रेजी बोलने के लिए मैंने अपने वालिद प्रोफेसर मसऊद आलम की तकनीक का हमेशा इस्तेमाल किया और इस मक़ाम तक पहुंचा हूँ! ताज़्ज़ुब तो तब हुआ जब हाल ही मेरे द्वारा एडिट (सम्पादित) यूनिवर्सिटी मैगज़ीन को मेरे पिताजी के एक करीबी मित्र ने पढ़के कहा कि यह शैली बिलकुल मरहूम प्रोफेसर मसऊद आलम साहब वाली है! उन्होंने कहा कि अगर आज तुम्हारे वालिद हयात से होते तो उनको अपने बेटे में अपने लिखावट की परछाई देखकर काफी ख़ुशी मिलती! उनकी बातें सुनकर मेरा दिल भर आया और आँखें छलक गईं! आज फिर एहसास हुआ कि कटिहार जिले के एक छोटे से गाँव कदमगाछी में जन्मे प्रोफेसर मसऊद आलम जैसे एक चिराग ने कई चिराग़ जलाएं हैं और उन खुशकिस्मत चिरागों में मैं यानी मोहम्मद मुदस्सीर आलम भी  हूँ! और दिल में यह तमन्ना हमेशा रहती है की इलाक़े के कई और चिरागों को रौशन करूँ ताकि सिलसिला चलता रहे! 

आखिर में इन अशआर (पंक्तियों) के साथ शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने वालिद प्रोफ़ेसर मसऊद आलम साहब को ख़राजे अक़ीदत पेश करना चाहूँगा! 

"जहाँ जायेगा वहीँ अपनी रौशनी लुटाएगा, "जहाँ जायेगा वहीँ अपनी रौशनी लुटाएगा, 

किसी चिराग़ का अपना मकाँ नहीं होता, किसी चिराग़ का अपना मकाँ नहीं होता"।।

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