Sunday, 4 December 2016

क्या किशनगंज में मारवाड़ी समाज खौफ के साये में है ? फ़िरोज़ आलम की क़लम से



मारवाड़ से किशनगंज तक

बिहार के किशनगंज और राजस्थान के मारवाड़ भले ही भौतिक रूप से एक दूसरे से दूर हो पर मारवाड़ (राजस्थान) से पलायन करने वालों ने दोनों के बीच की दुरी को बहुत कम कर दिया हैं। ये अलग बात है कि पलायन एक तरफा है। आज़ादी के बाद राजस्थान जैसे राज्य में रोजगार और व्यवसाय के आभाव में शुरू हुआ पलायन, आज के भारत में कोई ऐसा राज्य नहीं जहाँ मारवाड़ी समुदाय के लोग न बसे हो। इतिहास गवाह है जो समुदाय जितना पलायन किया है उनमें समय और परिस्थिति के अनुसार खुद को बदलने की क्षमता भी उतनी ही अधिक होती है। 




स्वाभाविक है कि जब कोई व्यक्ति विस्थापित हो कर नये शहर में बसता है तो कई वर्षों तक वो डरा हुआ, सहमा सहमा सा रहता है जब तक कि कोई शक्ति उसको संरक्षण ना दे दे। इसलिए मुझे लगता है डर के आगे जीत है आज का मारवाड़ी समाज किशनगंज के परिप्रेक्ष में इस कथन पर 100 प्रतिशत खड़ा उतरा है। इन लोगों का आपस में नेटवर्किंग और समन्वय बहुत मज़बूत होता है देश के किसी भी कोणे में रहने वाला आदमी खुद को अकेला नहीं समझता और सर झुका कर काम निकालना अपने धन्दे के प्रति ईमानदारी और अलग अलग संस्कृति एवं माहौल में बहुत तेज़ी से घुल मिल जाना मारवाड़ी समाज की खास विशेषता है। हमारे पूर्वज जब खगड़ा मेला में डेरा डाल कर हज़ारों रूपये उड़ा रहे थे और पिकनिक मनाया करते थे तब ये समाज व्यवसाय करने में व्यस्त थे। मैं हैरान था ये देख कर जब घर में मुझे एक दस्तावेज़ मिला, 1953 में सोहन लाल बैध का परिवार जैशलमेर राजस्थान से आ कर किशनगंज में जमीन ख़रीदा और जुट का व्यवसाय स्थापित किया इस प्रकार सोहनलाल बैध के तरह सैकड़ों परिवार अपने अपने व्यवसाय को नया आयाम दे रहे थे। तब तक बहुत से लोग आज़ादी और अंग्रेजों के क़िस्से कहानी चौक चौराहा में सुनाया करते थे। इतिहास के पन्नो में इस तरह के बहुत से उदहारण मिलेंगे।

किशनगंज में उद्योगिक विकास
भले आज किशनगंज में कोई उद्योग नहीं है जब हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो किशनगंज में कभी रोलिंग मिल हुआ करता था , कभी पेपर मिल भी हुआ करता था। ये उस समय की बात है जब किशनगंज में बिजली नसीब वालों को मिलती थी। उस समय इन उद्योगों को स्थापित करना और चलाना अपने में एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। मैं उस समुदाय के दूरदर्शिता को सलाम करता हूँ। हमारे सुरजापुरी समुदाय, इस्टेट, रियल स्टेट को या तो अपनी मिट्टी से लैला मजनू वाली मुहब्बत थी या खगड़ा मेला के चका चौंध वातारण को छोड़ना नहीं चाहते थे। शायद इसलिए आज भी हम हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं और सुरजापुरी समुदाय के जंजीरों से खुद को जकड़े हुए हैं। एक सच्चाई ये भी है कि सीमांचल के लड़के शिक्षा देश विदेश से प्राप्त कर आगे बढ़ रहे हैं पर धरातल पर बिज़नेस करना हमें इन्ही लोगों ने सिखाया है।
सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाहन
मारवाड़ी समाज सिर्फ ईमानदारी से बिज़नेस ही नहीं बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी को भी उतनी ही ईमानदारी से निभाते चले आ रहे हैं। जब मारवाड़ी कॉलेज को जमीन देने की बारी आई तो यही लोग आगे आये और वक़्त बे वक़्त प्राकृतिक आपदाओं के समय भीं दिल खोल कर सहयोग देने में पीछे नहीं हटते हैं। पिछले कई दसकों से देखा गया है कि किशनगंज में जब से हिन्दू कट्टर पंथी विचारधारा का विस्तार हुआ है ये लोग मारवाड़ी समाज को अपने संरक्षण में लेने का भरपूर प्रयास किया है बहुत हद तक राजनितिक भगवा विचारधारा से प्रभावित हो कर इनके सोच विचार में भारी बदलाव आया है। जब कि इन लोगों का विचारधारा सिर्फ और सिर्फ बिज़नेस है पर राजनितिक संरक्षण इन लोगों की मज़बूरी है यही कारण है कि आज मारवाड़ी समुदाय के लोग अलग अलग राजनितिक दल से जुड़े हुए हैं ताकि जरुरत पड़ने पर फायदा मिल सके। कभी कभी यही राजनितिक कारणों से व्यवसाय से जुड़े कुछ लोगों को भाड़ी नुकसान उठाना भी पड़ा है।

राजनितिक भय
कुछ राजनेता अपनी रसूख और ताकत का भय इनलोगों पर बनाये रखना चाहते हैं ताकि चुनाव के समय चुनावी खर्चे का उगाही इन लोगों से कर सके। इसी उगाही के डर से ये लोग अलग अलग राजनेता के संरक्षण में रहते हैं। पर इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि आंतरिक तौर पर सभी लोग सभी एक मंच,एक मत पर होते हैं।


सूत्र और शहर के चौक चौराह में दबे जुबान में बात चल रही है कि अभी हाल के किशनगंज के नगर परिषद् अध्यक्षा के घर और प्रतिष्ठान पर इनकम टैक्स की छापा राजनितिक कलह का परिणाम है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में अध्यक्षा पति त्रिलोक चंद जैन बीजेपी छोड़ किसी अन्य पार्टी से चुनाव लड़े थे। त्रिलोक चंद जैन की सामाजिक कार्य और राजनीती में बढ़ते हौसले से कुछ लोगों के पेट में दर्द होना स्वाभाविक है यही कारण है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी से टिकट कटवा दिया जिस कारण अन्य पार्टी से चुनाव लड़ना पड़ा।

जिस प्रकार प्रदेश की राजनितिक पार्टी द्वारा देश में एक प्रकार का वातावरण पैदा किया जा रहा है कि मेरे साथ हो तो देश भक्त अन्यथा देश द्रोही। चंदा दो वरना इनकम टैक्स का छापा मरवा देंगे। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से व्यवसायों को सांकेतिक चेतावनी दी जा रही है जिससे शहर के सभी व्यवसायी डर के साये में अपना धंदा चला रहे हैं।

डिस्क्लेमर: यह लेखक के अपने विचार हैं

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