शिक्षा में दिलचस्पी पैदा करने के लिए क्या शायर बन जाऊँ?
पिछले हफ्ते किशनगंज पब्लिक स्कूल द्वारा मारवाड़ी कॉलेज के प्रांगण में आयोजित जश्ने तालीम प्रोग्राम में शामिल होने का मौका मिला! स्कूल के बच्चों के सांस्कृतिक प्रोग्राम (Cultural Programmes) और तालीमी कांफ्रेंस (Educational Conference) जश्ने तालीम का हिस्सा थे! जश्ने तालीम में समारोह स्थल पर ज़्यादातर स्कूल के बच्चों के माता - पिता, अभिभावक एवं नज़दीकी रिश्तेदार मौजूद थे! हालाँकि आम लोग भी जश्ने तालीम में मौजूद थे लेकिन उनमे ज्यादा जोश (उत्सुकता) नहीं दिखी और बच्चों की हौंसला अफ़ज़ाई के लिए बार - बार प्रोग्राम के एंकर को गुजारिश करनी पड़ी! आम लोगों में शायद ही तालीमी कांफ्रेंस को लेकर बहुत ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी और कुर्सियों के बराबर लोग थे! लेकिन जश्ने तालीम के फ़ौरन बाद मुशायरा (Mushaira) का प्रोग्राम आयोजित किया गया था और माहौल मिनटों में बदल गया! हर तरफ शोर शराबा और तालियों की गड़गड़ाहट से मारवाड़ी कॉलेज का प्रांगण और आसपास का इलाका गूँज रहा था! मुशायरे के वक़्त हज़ारो लोगों का हुजूम मारवाड़ी कॉलेज में जमा था, कुर्सियाँ कम पर गई और हालात बेक़ाबू हो गए! यहाँ तक कि प्रशासन को भीड़ को काबू में करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा!
गौर करने वाली बात है कि एक ही स्कूल द्वारा आयोजित दो अलग - अलग प्रोग्रामों के प्रति लोगों का रवैया काफी चौकाने वाला था! जहाँ हफ़्तों की मेहनत के बाद नन्हे - मुन्ने बच्चों के द्वारा पेश किए गए दिल को छू जाने वाले प्रोग्रामों के प्रति दिलचस्पी काफी कम दिखी और हलकी - फुलकी तालियों से उनका मनोबल बढ़ाया जा रहा था, वहीँ मुशायरे में शामिल पेशेवर शायरों को क्या नौजवान क्या बूढ़े सब दाद दे-दे कर उनको प्रोत्साहित कर रहे थे!
मुशायरे की मैं आलोचना नहीं करता, शायरी - शायरों का अपना ही रुतबा होता है और ये भी समाज और देश के लिए ज़रूरी है! लेकिन लोगों की शिक्षा और शिक्षा से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रति नीरस रवैये से काफी निराशा होती है!
क्या सामाजिक परिदृश्य शिक्षा के बिना मुशायरे से बदल सकती है? बिलकुल नहीं! अगर आप अपनी सोच को नहीं बदलेंगे और कुछ पल के मज़े के लिए शिक्षा को नदरअंदाज करेंगे तो फिर बुद्धजीवी समाज को ही शिक्षा के महत्व को समझाने के लिए अपने आपको बदलना होगा और हालात ऐसे ही रहे तो हो सकता है वे शायर बन जाएं और शायरी की भाषा में ही अपनी बात आपतक पहुँचाए ! सोचिए, सोचने का वक़्त है!
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