Wednesday, 15 February 2017

क्या किशनगंज आदिवासियों के खौफ के साये में जी रहा है ?



क्या किशनगंज आदिवासियों के खौफ के साये में जी रहा है ? 
आदिवासियों द्वारा पोठिया थाने में लगाई गई आग, रहमानी की ज़मीन पर कब्ज़ा, आदि घटना खतरे की घंटी है..




किशनगंज जिला अंतर्गत पोठिया थाना को पिछले हफ्ते आदिवासियों ने जला दिया और विधि - व्यवस्था को तहस - नहस करने की कोशिश की! प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद पुलिस उपद्रवियों से थाने को बचा नहीं पाई और गाड़ियाँ, फर्नीचर आदि आग में जलकर खाक हो गए! अफवाह फैलाई गई थी कि पुलिस हिरासत में एक आदिवासी को जान से मार दिया गया है! हालाँकि ऐसा कुछ नहीं था लेकिन एक अफवाह से थाना जला और मामले को साम्प्रदायिक रंग देने कि भी कोशिश की गई! लेकिन ये घटना महज़ एक साधारण घटना नहीं है बल्कि शांति और भाईचारगी के लिए देश और दुनिया में जाने वाले किशनगंज की छवि को ख़राब करने की एक पहल है! अगर एक नज़र डालें तो विधि - व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए पिछले करीब 5 वर्षों में ऐसी कई वारदातें हुई हैं जो कहीं न कहीं सांप्रदायिकता का ज़हर भी समाज में घोल रही है! 


सनद रहे कि पिछले एक दशक में किशनगंज ज़िले में बड़ी संख्या में आदिवासियों का पलायन हुआ है जिन्होंने सरकारी ज़मीन के साथ - साथ स्थानीय लोगों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है! वहीँ विरोध होने पर या ज़मीन खाली करवाने जाने पर तीर - भाले और दूसरे हथियार से स्थानीय लोगों को डराया जाता है और प्रहार भी किया जाता है! इसी क्रम में आदिवासियों ने शीतलपुर के बड़े व्यापारी अफ़ज़ाल हुसैन के 300 एकड़ भूमि पर कब्ज़ा कर लिया जिसे उन्होंने बाद में इमारते शरिया के अमीर मौलाना वली रहमानी को बेच दिया! लेकिन कई वर्ष गुजरने के बाद भी रहमानी साहब की ज़मीन को प्रशासन आदिवासियों से मुक्त नहीं करवा पाई है! इन्हीं लोगों ने चकला में प्रस्तावित अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) की ज़मीन पर भी ज़बरदस्ती कब्ज़ा कर लिया था और हथियारों से गाँव वालों और अधिकारियों को डराते रहते थे! 

आप समझ सकते हैं कि आदिवासियों का मनोबल किशनगंज धीरे - धीरे कितना बढ़ गया है कि उन्होंने पुलिस थाने को भी जलाने में भी कोई संकोच नहीं हुआ! जिस वर्ग यानी आदिवासियों को अगर पुलिस / प्रशासन से कोई खौफ नहीं है वे भला किशनगंज की भोली - भाली जनता से क्या डरेंगे! यानि कुछ स्थानीय नेताओं और लोगों के निजी स्वार्थ की वज़ह से किशनगंज में बाहर से आदिवासियों को लाकर बैठाया गया जो धीरे - धीरे कैंसर की तरह अपना वर्चस्व पुरे ज़िले में बढ़ा रहे हैं! अगर हालात ऐसे ही रहे तो वो दिन दूर नहीं जब किशनगंज की जनता आदिवासियों के खौफ के साए में जियेगी और प्रशासन के पास हाथ - पे - हाथ धरे बैठे रहने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा! समय की माँग ये है कि आदिवासियों के खिलाफ किशनगंज की जनता एकजुट हो और उनके आकाओं को बेनकाब करके सबके सामने लाए तभी यह ज़िला और भारत सुरक्षित रह सकता है!

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