Wednesday 15 July 2020

एमपी साहेब, इडियट नो सर, ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये

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एमपी साहब गाली नो - नो सरऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये

 

Disclaimer (अस्वीकरण) : - ये मेरे अपने स्वतंत्र विचार हैं, अगर किसी की भावना आहत हो तो इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ

 


पिछले 2 दिनों से किशनगंज के माननीय सांसद डॉ० ज़ावेद आज़ाद का ऑडियो सोशल मीडिया फेसबुक (Facebook) , व्हाट्सएप (WhatsApp) पर काफी वायरल हो रहा है | ऑडियो में सांसद साहब किशनगंज ज़िले के खाड़ी बस्ती ( महेशबथना ) बहादुरगंज  के निवासी श्री जनान अहमद से फोन पर बातें कर रहे हैंऑडियो सुनने पर पता चलता है कि पहले एमपी साहब के कोई सहयोगी  जनान अहमद से बात कर रहे हैं और बाद में वे खुद बात करते हैंजनान अहमद अपना परिचय देने के बाद अपना और अपने गाँव के लोगों की परेशानी को बयान कर रहे हैं | बातचीत के दौरान  जनान अहमद  कहते हैं कि कनकई नदी के कटाव की वज़ह से वे लोग परेशान हैं तो एमपी साहब ने कहा कि " लिख कर भेजो और बदतमीज़ी से कभी बात मत करो " | ज़वाब में  जनान अहमद  कहते हैं कि कौन चीज का बदतमीज़ी और कितनी बार लिख कर भेजूँ , यहाँ हमलोग मरे जा रहे हैं बताइये कितने बार लिखकर भेंजे | माननीय सांसद साहब कहते हैं कि जब तक काम नहीं होता है लिखकर भेजो और बदतमीज़ी मत करो समझे, बदतमीज़ी के लिए मैं पॉलिटिक्स नहीं करता | फिर दोनों पक्षों में तू - तू, मैं - मैं होती है और  डॉ० ज़ावेद आज़ाद साहब ' इडियट (IDIOT) कहीं का ' और बद्तमीज़ आदमी पर अपनी बात ख़त्म करते हैं

 

एमपी साहब ने झुंझला कर फ़ोन काट दिया लेकिन जैसे तरकश से निकला तीर वापस नहीं हो सकता वैसे ही मुँह से निकली बात वापस नहीं ली जा सकती है | तकनीक का ज़माना है  जनान अहमद  ने फ़ोन को रिकॉर्डिंग मोड पर रखा था सारी बातें टेप हो गई और ज़ल्द ही विभिन्न माध्यमों से आम लोगों में साझा भी हो गईजिसने भी ऑडियो सुना अपनी प्रतिक्रिया सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर किया और एमपी साहब को बुरा - भला कहा जो स्वाभाविक है और होगा ही | वहीँ विरोधी पार्टियों और उनके नेताओं को भी कोरोना काल और बाढ़ के समय बैठे- बैठाये मुद्दा मिल गया जिससे कुछ दिनों तक एमपी साहब अभी चर्चा का विषय बने रहेंगे | वहीँ एमपी साहब के समर्थकों एवं पार्टी कार्यक्रताओं ने  सोशल मीडिया फेसबुक (Facebook) , व्हाट्सएप (WhatsApp) पर लिखा है कि ऑडियो को सुविधानुसार ट्रिम (Trim) कर शेयर किया गया  है और  जनान अहमद ने पहले अपशब्दों का इस्तेमाल किया था

 

खैर एमपी साहब से गलती तो हुई है और इससे इंकार नहीं किया जा सकता है |  लेकिन मेरा फॉक्स एरिया कुछ है और उसको मैं संक्षेप में आपसे साझा करता हूँ | सबसे पहले मैं  माननीय सांसद डॉ० ज़ावेद आज़ाद के द्वारा उत्तेजना में दिए गए जवाब और इस्तेमाल की गई भाषा की निंदा करता हूँ


अब सवाल ये उठता है कि आप एक इंसान के तौर पर उत्तेजित या आपा कब खोते हैं ? जब आप अपने काम के प्रति ईमानदारी से आत्मंथन करते हैं तो आपको अपनी कमियाँ नज़र आती हैं, एमपी साहब की उत्तेजना (आपा खोना)  सिर्फ  जनान अहमद से फोन पर बातों तक ही सिमित नहीं हैं | ज़िले से सम्बंधित कई और पहलुओं पर भी वे सोचते होंगे तो उन्हें परेशानियां साफ़ दिखती होंगी और वे अपने स्तर पर उसे सुलझाने का प्रयास भी करते होंगे | हर साल आने वाली बाढ़ पुरे ज़िले वासियों ख़ासकर टेढ़ागाछ प्रखंड के लिए तो किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं, ऐसी समस्याओं का समाधान दशकों से नहीं ढूंढ़ा गया

हक़ीक़त है कि आज़ादी से आज तक इसका कोई समाधान नहीं निकाला गया है, 5 साल पर एक सांसद चुन कर आते हैं लेकिन संसद में मजबूती से बात रखी नहीं जाती | महानंदा बेसिन परियोजना दशकों से अधर में लटका है, दफ़तरों में फाइलें धूल फांक रही है लेकिन अभी तक इसको ज़मीन पर उतारा नहीं गया है |  ऐसा इसलिए हो रहा है कि कोई भी निर्वाचित सांसद या विधायक मामले की गंभीरता को नहीं समझता और किसी भी मुद्दे की जड़ (डॉक्टरी भाषा में कहें तो नब्ज़ नहीं पकड़ता) तक नहीं जाता जिससे समस्यांए जस-की-तस रह जाती हैं

जब आप सुनियोजित तरह से काम नहीं करेंगे तो जनता सवाल करेगी आपको संयम से जवाब देना होगा | लेकिन अपनी नाकामी को छुपाने के लिए किसी को गाली देना या अपशब्दों का इस्तेमाल करना बिलकुल उचित नहीं है चाहे वे जनप्रतिनिधि हों या कोई और | डॉ० साहब ने पहले भी फोन पर CAA / NRC के सवाल पर आपा खोया था जो बिलकुल उचित नहीं है  उस समय भी काफी आलोचना हुई थी लेकिन उन्होंने दोबारा यही गलती की है | संयम से काम लेना ही एक कामयाब राजनेता की पहचान होती है और जनता के मुद्दों पर गंभीरता से सोच- विचार कर हल निकलना राजधर्म है

 

अंत में मुझे कबीर का दोहा याद आता है, जो माननीय सांसद महोदय के लिए काफी बहुमूल्य है :-

 

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये |
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए || 

 

कबीर ने अपने दोहे में वाणी यानि आपके मुँह से निकली बातों को अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया है। उन्होंने वाणी को सबसे ऊपर रखा है। अर्थात हमें ऐसी मधुर वाणी बोलनी चाहिए, जिससे दूसरों को शीतलता का अनुभव हो और साथ ही हमारा मन भी प्रसन्न हो उठे। मधुर वाणी औषधि के सामान होती है, जबकि कटु वाणी तीर के समान कानों से प्रवेश होकर संपूर्ण शरीर को पीड़ा देती है। मधुर वाणी से समाज में एकदूसरे के प्रति प्रेम की भावना का संचार होता है। जबकि कटु वचनों से सामाजिक प्राणी एकदूसरे के विरोधी बन जाते है।

 

 



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