Tuesday 18 August 2015

क्या अख्तरुल ईमान को अवसरवादी कहना उचित है?

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डिस्क्लेमर:- यह लेखक के अपने विचार हैं और समीक्षा के उद्देश्य से व्यक्त किये गए है, अगर इससे किसी की भावनाये आहात होती हैं तो छमा करें!


पूर्व कोचाधामन / किशनगंज विधायक अख्तरुल ईमान ने जैसे ही आल इंडिया मजलिसे इत्तिहादुल मुस्लेमीन (AIMIM) का दामन थामा है, उनपे अवसरवादी होने का आरोप / प्रत्यारोप सोशल मीडिया से लेकर अख़बारों में सक्रिय राजनेताओं, समीक्षकों, बुद्धजीवियों, एवं आम जनता दूारा लगाया जा रहा है! लेकिन एक स्वंत्रत पत्रकार, एक आम और सचेत नागरिक की तौर पर मैं उन्हें अवसरवादी नहीं मानता! हक़ीक़त यह है की सक्रिय राजनीती जनाब अख्तरुल ईमान का करियर (career) है, और राजनीती में सक्रिय रहने के लिए उन्हें एक प्लेटफार्म (पार्टी) चाहिए जहाँ से वे चुनाव जीत सकें और अपने राजनितिक करियर को आगे बढ़ा सकते हैं! मुझे पता है मेरी इन बातों से बहुत सारे बुद्धजीवी इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते हैं, खासकर व समुदाय जो बड़े शहरों में जैसे दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, आदि में सरकारी या प्राइवेट / कॉर्पोरेट कंपनियों में जॉब करते हैं! मेरा उन भाइयों से सवाल है क्या आप अपने करियर की बेहतरी के लिए, पैकेज और पोजीशन के लिए जॉब नहीं चेंज (switch-over) नहीं करते हैं क्या? भले ही आपके कंपनी छोड़ने से कोई बड़ा प्रोजेक्ट / कार्य प्रभावित हो और मैनेजमेंट के शिफारिश के बाद भी आप अपने करियर की चिंता करते हुए दूसरी कंपनी को ज्वाइन कर लेते हैं! क्या कंपनी में प्रोजेक्ट / काम  को बीच मजधार में में छोड़के जाना अवसरवाद नहीं हैं? बेशक यह अवसरवाद है लेकिन फायदा आपका होता है इसलिए आप नज़रअंदाज़ कर देते हैं! आज जनाब अख्तरुल ईमान के भी ऐसे ही हालात हैं और हम उन्हें अवसरवाद कहने से पहले जरा भी नहीं सोचते हैं! आज उनके राजनितिक करियर का प्रश्न है और उनको AIMIM में अपना विकल्प दिख रहा है तो इसमें बुराई क्या है? हम क्यों फसेबूक (Facebook) और सोशल मीडिया में उनके राजनितिक दिशा की मोरल पुलिसिंग (moral policing) करने में अपना समय बर्बाद कर रहे हैं! हक़ीक़त तो यह है कि मुद्दों पर बात होनी चाहिए तभी समाज, शहर, जिला और सीमांचल इलाक़े का विकास हो सकता है!



एक सत्य में और प्रस्तुत कर दूँ किशनगंज के सक्रिय राजनितिक हस्तियों के बारे में जो कि अख्तरुल ईमान की आलोचना करते हैं, क्या वे कभी- न-कभी, किसी-न-किसी रूप में अवसरवाद नहीं रहे हो! हमारे माननीय सांसद मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी ने भी कांग्रेस (कांग्रेस) में रहते हुए पिछली दो जीत से पहले अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ा है, जिसमे समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) एवं नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) शामिल हैं! ठाकुरगंज के विधायक जनाब नौशाद आलम ने भी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) का साथ छोड़कर अपनी बेहतरी के लिए जनता दल (यूनाइटेड) का दामन थामा है! ऐसे कई उदहारण हैं किशनगंज में जिसपे आप गौर करेंगे तो आपको सच्चाई का पता चलेगा! इसलिए सिर्फ अख्तरुल ईमान के सर पर ही अवसरवाद के कलंक का घड़ा फोड़ना उचित नहीं है और ऐसा कहने से पहले कम-से-कम आंकड़ों एवं किशनगंज जिले के राजनितिक इतिहास के पन्नों को पलट कर ज़रूर देखिये! सच तो यह है की आज भी किशनगंज मेंऐसे कई सक्रिय नेता हैं जो हर चुनाव में नई-नई पार्टी का टिकट लेकर चुनाव लड़ते हैं! इसलिए सिर्फ अख्तरुल ईमान की आलोचना ठीक नहीं हैं, वे अवसरवाद हैं या नहीं इसका फैसला जनता पर छोड़ दीजिये, जनता जिसे चाहे अपना वोट (मत) दें!  

हालाँकि मैं तो राजनितिक समीक्षक नहीं हूँ लेकिन जाते-जाते थोड़ा सुझाव जनाब अख्तरुल ईमान के समर्थकों को भी देना चाहूंगा! किशनगंज के इतिहास में अख्तरुल ईमान जैसा शायद ही कोई ऐसा विधायक रहा होगा जिसे बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों का इतना दिली जनसमर्थन प्राप्त हुआ होगा! इतिहास इसका गवाह है और इसका नतीज़ा ही है की उन्हें 6 महीने के अंतराल  में 2005 में दो बार भारी जनादेश प्राप्त हुआ! लेकिन जीत और राजनीती की चकाचौंध में जनाब अख्तरुल ईमान साहब कहीं-न-कहीं अपने मिशन से भटक गए और उनकी आलोचना होने लगी! जिन युवाओं ने अख्तरुल ईमान के चुनाव प्रचार के लिए दिन-रात एक कर दिया उन्होंने उन्ही को दरकिनार करना शुरू कर दिया! खासकर उन युवाओं को जिनका रुझान सक्रिय राजनीती में दिखा अख्तरुल ईमान के समर्थकों ने हर मोड़ पर उन्हें निशाना बनाया! सोशल मीडिया में उनकी निजी जिंदगी के छुपे हुए पहलुओं को भद्दे-तौर पर उछाला जिसे पढ़कर कोई भी सभ्य आदमी दोबारा उन शब्दों पर नज़र डालने की भी कोशिश न करे! शायद उनके समर्थक यह भूल गए की सकारातमक (positive) एवं नकारात्मक (negative) आलोचना (क्रिटिसिज्म) किसी भी व्यक्ति या राजनेता के व्यक्तित्व को उत्कृष्ट बनाने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं! जो लोग उनके कार्य की आलोचना कर रहे थे वे कभी उनके अपने ही थे, इसलिए उन कमियों को सुधारने की जगह आलोचना करने वाले व्यक्ति को ही निशाना बनाया गया! सत्य तो यह है कि जिनसे आप उम्मीद रखते हैं उनसे ही शिकायत होती है, जो कार्य करता है उसी की आलोचना होती है और यह स्वाभाविक है! इसलिए आलोचना से दूर भागना एक समझदार इंसान का चरित्र नहीं है!  अच्छा व्यक्ति वही होता है जो अपनी गलती में समय के साथ सुधार करें! 

समय ने अख्तरुल ईमान को एक और मौका दिया है, वे अपने पिछले कार्यकाल की समीक्षा करें और नए अजेंडे के साथ जनता के बीच जाएँ, जो उनकी सबसे बड़ी शक्ति है! आलोचना तो होती रहेगी, आपका काम आपकी आलोचकों को जवाब देगा! हाँ उनके समर्थक इस बात का ध्यान रखें की सोशलमीडिया में संयम बरतना जरुरी है, किसी व्यक्तिविशेष को निशाना बनाके एक राजनेता सफल नहीं हो सकता है, क्यूंकि एक व्यक्ति एक मोहल्ले या गाँव के विचार आपके विपरीत करवा सकता है, जो जनादेश पर असर डाल सकता है और किसी राजनीतिज्ञ का करियर तबाह कर सकता है!  

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