Wednesday 7 October 2015

"पिछड़ापन" - किशनगंज, पूर्णिया, सीमाँचल का सिर्फ एक चुनावी जुमला?

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"सीमाँचल पिछड़ा है, अगर सत्ता में आऊंगा तो इस छेत्र का विकास करूँगा! किशनगंज देश में सबसे पिछड़ा जिला है, यहाँ देशभर में सबसे काम महिला शाक्षरता प्रतिशत है! किशनगंज की बदहाली को देखकर मेरा दिल रोता है, यहाँ के हालात आज़ादी के बाद नहीं बदले! अगर आपने मुझे / मेरी पार्टी को बहुमत दिया तो इस जिले / छेत्र का विकास करूँगा! सीमाँचल / किशनगंज का पिछड़ापन एवं विकास की दुहाई देते नेतागण नहीं थकते, लेकिन सत्ता हासिल करने के बाद हालात में कोई बड़ा बदलाव नहीं आता और जनता भी आज़िज़ आके फिर दूसरे चुनाव का इंतज़ार करने लगती है! क्यूंकि मैं किशनगंज / कटिहार (सीमाँचल) का निवासी हूँ इसलिए मैंने कई चुनाव देखे हैं, इसलिए 'पिछड़ापन' एवं 'विकास' मुझे अब चुनावी जुमले से ज्यादा कुछ नहीं लगते हैं!"

यह भी सच है कि पिछले दस साल में सड़कों का जाल बिछा है और बिजली गावँ - गावँ तक पहुंची है, लेकिन सिर्फ इसको विकास नहीं कहा जा सकता! सड़के तो बन गयी लेकिन ईलाज के लिए अच्छे अस्पतालों एवं डॉकटरों की कमी है, स्कूल तो हैं लेकिन योग्य शिक्षकों के अभाव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती है, रोजगार के लिए बड़े स्तर पर पलायन हो रहा है, गरीबी - भुखमरी अभी भी देखी जा सकती है! बिजली तो है लेकिन बल्ब खरीदने और बिजलीबिल जमा करने में भी कई परिवार असमर्थ हैं! अब जरुरत इस बात है की जनप्रतिनिधिगण ' 'पिछड़ापन' एवं 'विकास' के चुनावी जुम्लों से ऊपर उठें और एक कारगर रोडमैप तैयार कर अपने-अपने छेत्र के विकास पर ध्यान दें! 



पिछले चुनावों के नतीजें चाहे जो कुछ भी रहे हों, सभी प्रमुख पार्टियों एवं उनके प्रत्याशियों का मुख्य चुनावी मुद्दा सीमाँचल का पिछड़ापन रहा है! खासकर पूर्णिया प्रमंडल के चार जिले पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार और अररिया में चुनाव लड़नेवाले उम्मीदवार बड़े-बड़े वादों की झड़ी लगा देते हैं, और उन्हें जीतने के बाद फ़ौरन पूरा करने का संकल्प लेते हैं! इन सभी प्रत्याशियों में एक प्रमुख मुद्दा होता है 'पिछड़ापन', जिसको लेके वे काफी चिंता प्रकट करते हैं, लेकिन अफ़सोस चुनाव जितने में बात सीमाँचल के शायद ही किसी राजनेता को विकास की चिंता रहती है! उनको छेत्र का विकास प्रधानमंत्री सड़क योजना और मुख्यमंत्री सड़क योजना के शिलान्यास में दीखता है, खासकर काली / सफ़ेद रंग के शिलापट में सुनहरे अक्षरों में अपना नाम लिखवाने में रहता है! ऐसे शिलान्यास / उद्धघाटन में अपने कुछ समर्थकों के साथ नेताजी फोटो खिंचवाने में जिले और राज्य का विकास देखते हैं! लेकिन शिलापट के दूसरे तरफ पिछड़ापन का कड़वा सच मुँह चिढ़ाते हुए मुस्कुराता है और शायद कहता है कि लो हो गया विकास!

वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी "सीमाँचल का पिछड़ापन" / विकास प्रमुख गठबंधन एवं दूसरे दलों के प्रत्याशियों का मुख्य मुद्दा है, या यूँ कहेंकि भारतीय राजनीती में चर्चित शब्द "जुमला" है! जब तक चुनावी हलचल है यह जुमला सुपरहिट है और जैसे ही नतीजे आगे आएँगे यह 'जुमला' आगामी पाँच सालों तक जमीनीस्तर पे अपने यतार्थ अर्थ को देखने के लिए फिर इंतज़ार करता रहेगा! अगर मैं ज्यादा पीछे कि बात नहीं करुँ तो वर्ष 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जितने वाले सांसद मौलाना असरारुल हक़ कासमी की जीत को किशनगंज की आज़ादी के रूप में देखा गया और जिले के करीब 17 लाख लोगों को समुचित विकास देखने की आस जगी! जिले के बुजुर्गों, नौजवानों, बच्चों और हर वर्ग के लोगों को मौलाना कासमी में अपनी समस्याओं का समाधान दिखने लगा और सबको यह लगने लगा कि जिले का संपूर्ण विकास होगा और 'पिछड़ेपन' से निजात मिलेगी! लेकिन अफ़सोस केंद्र में अपनी पार्टी की सरकार होने के बावजूद मौलाना कासमी अपने को 'एएमयू किशनगंज' की मुहीम से जोड़ने और स्वयं उसका श्रेय लेने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाये! वर्ष 2014 में जनता ने अधूरे मन से योग्य उम्मीदवार के अभाव में मौलाना कासमी को दोबारा भारी संख्या में अपना मत देकर संसद तक पहुँचाया! आज हालत यह है कि जनता मौलाना कासमी का नाम भी लेना नहीं चाहती और तरह-तरह से अपनी निराशा को प्रकट करती है! किशनगंज ने मौलाना की पहली बार जीत के साथ विकास का जो सपना देखा था, आज वह पूरी तरह चकनाचूर हो गया है!

सिर्फ मौलाना कासमी को किशनगंज की बदहाली के लिए सारा दोष देना नाइंसाफी होगा! सच तो यह है कि पहले भी जो सांसद रहे हैं उन्होंने भी पिछड़ेपन पर रोना रो कर और विकास का सपना दिखा कर सत्ता हासिल की लेकिन हालात में कुछ खास बदलाव नहीं आया! किशनगंज जिले के चार विधानसभा छेत्रों जिसमें किशनगंज, कोचाधामन, बहादुरगंज और ठाकुरगंज आते हैं, इनमें भी चुने गए विधायकों का अहम मुद्दा पिछड़ापन और विकास ही था! लेकिन चुनाव में विजयी होने के बाद वे विकास के अहम मुद्दे से हटकर दूसरे मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देने लगे और जनता अगले चुनाव का रह देखने लगी! मैं यह नहीं कहता कि जनता के दूारा चुने गए इन सांसदों एवं विधायकों की मंशा ठीक नहीं थी, या उन्होंने जनता के हित में कोई काम ही नहीं किया! हक़ीक़त में उनके पास विकास को लेकर कोई ठोस रोडमेप नहीं था और न ही उन्होंने अपने छेत्री के सिविल सोसाइटी के लोगों से पिछड़ापन को दूर करने को लेकर कोई परामर्श लिया! 

यहाँ मैं यह बात भी बताता चलूँ कि 'जब जागो तब सवेरा', इसलिए पिछली सारी बातों को भुलाकर वर्तमान सांसद एवं विधानसभा चुनाव में सफल होने वाले विधायकगण किशनगंज के पिछड़ेपन को सिर्फ एक 'चुनावी जुमला' की तरह इस्तेमाल न करें! अगर जनता के भरोसे पर खड़ा उतरना है तो जनप्रतिनिधि को पिछड़ापन दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझावों पर गौर करना चाहिए और हर मोड़ पर सिविल सोसाइटी के लोगों से परामर्श भी लेने की आवश्यकता है!

(i)  गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रसार - जिले में सरकार दूारा चलाये जा रहे प्राइमरी, मिडिल, हाई स्कूल, सीनियर सेकेंडरी एवं कॉलेजों में दी जा रही शिक्षा का स्तर सुधारना चाहिए! जनप्रतिनिधि हर पंचायत में भर्मण करके वहाँ के स्कुल की व्यवस्था पर कड़ी नज़र रख सकते हैं और ऐसा वे करते हैं तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकती है! अगर बच्चों को सही शिक्षा मिल जाती है तो पिछड़ापन बहुत हद तक दूर हो जायेगा एवं यह छेत्र विकास की पटरी पर आ जायेगा! शिक्षा से लोगों में अच्छे-बुरे की समझ पैदा होगी और रोजगार के भी अवसर प्राप्त होंगे!

(ii) विश्वविद्यालय की स्थापना - पूर्णिया कमिशनरी में एक भी विश्वविद्यालय नहीं है, अगर जनप्रतिनिधि इस छेत्र में मिलके प्रयास करेंगे तो राज्य / केंद्र सरकार विश्वविद्यालय भी स्थापित हो सकता है और इससे विकास के कई आयाम खुलेंगे!

(iii) हर पंचायत में अच्छे अस्पताल की स्थापना - बड़े ही दुःख की बात है कि किशनगंज जिले में अच्छे अस्पताल की कमी है, जिला मुख्यालय में सादर अस्पताल है भी तो अच्छे डॉकटरों की कमी में सही ईलाज नहीं हो पाता! जनप्रतिनिधियों को चाहिए की हर पंचायत में अस्पताल की स्थापना पर जोड़ दें और वहाँ अच्छे डॉक्टर की बहाली सुनिश्चित करवाएँ! 

(iv) किशनगंज को टी जोन के रूप में प्रचार - प्रसार करना - टी यानी चाय जोन के रूप में किशनगंज का प्रचार - प्रसार किया जा सकता है, इससे जिले में व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा!

(v) किशनगंज को टूरिज्म डेस्टिनेशन (पर्यटन स्थल) के रूप में विकसित करना - किशनगंज का वातावरण केरल से मिलता जुलता है, महानंदा नदी, चाय के बागान, लहलहाते खेत, पर्यटकों को आकृषित कर सकते हैं, इस दिशा में भी आवश्यक कदम उठाये जा सकते है! 

(vi) रोजगार के अवसर पैदा करना - जनप्रतिनिधि अगर चाहें तो रोजगार संबंधी सरकारी योजनाओ को पंचायत स्तर पर अच्छी तरह लागु करवा सकते हैं और इन योजनाओं के बारे में जनता में जागरूकता पैदा कर सकते हैं! 

(vii) सामूहिक पलायन पर अंकुश लगाना - गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं रोजगार की तलाश में हर वर्ष हजारों लोग इस छेत्र से बड़े शहरों की तरफ पलायन कर जाते हैं, अगर जनप्रतिनिधि शिक्षा एवं रोजगार जिले  में ही सुनिश्चित कर दें तो काफी हद तक पलायन के दर को कम किया जा सकता है! 
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