Friday 9 October 2015

कोचाधामन का विधायक कौन? मास्टर मुजाहिद या अख्तरुल ईमान

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डिस्क्लेमर:- यह लेखक के अपने विचार हैं! यह विश्लेषण उपलब्ध कुछ साक्ष्यों के आधार पर लिखे गए हैं! इसे चुनाव परिणाम के रूप में ने देखा जाए!

                       राजनीती में कब कौन दोस्त बन जाए और कौन दुश्मन बन जाए, कहा नहीं जा सकता है! यूँ कहे कि राजनीती में कुछ स्थायी नहीं होता, अपने फायदे के लिए कोई भी राजनेता या पार्टी घोर विरोध के बाउजूद कभी भी हाथ मिला सकता है! इसका सबसे अच्छा उदहारण बिहार विधानसभा चुनाव में देखा जा सकता है, जिसमे 2010 चुनाव के दोस्त (जनतादल यूनाइटेड और बीजेपी) - दुश्मन बन गए और दुश्मन (जनतादल यूनाइटेड, आरजेडी और कांग्रेस) - दोस्त बन गए! कुछ ऐसा ही हाल किशनगंज के बहुचर्चित कोचाधामन विधानसभा छेत्र के है जहाँ एक दशक से ज्यादा समय तक घनिष्ठ मित्र रहे मास्टर मुजाहिद आलम और अख्तरुल ईमान एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं! समय की बिसात देखिये कि इन पुराने मित्रों को जब इस बार फिर से एक होने का मौका मिला था तो पार्टी लाइन पर दोनों फिर अलग हो गए!



जहाँ मुजाहिद महागठबंधन के अंतर्गत जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं वहीँ अख्तरुल, बिहार में कुछ दिन पहले एंट्री मारने वाले  हैदराबाद के बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन (एआईएमआईएम) के बैनर तले मैदान में हैं! दोनों दिग़ज़्ज़ोँ के बड़ी संख्या में समर्थक हैं, जो कभी एक सुर में बोलते थे लेकिन आज विरोधी हैं और इनके समर्थक अपने - अपने नेता के जीत का दावा भी ठोंक रहे हैं! इन सब घमासान के बीच कोचाधामन से कौन नेता विधायक के सीट पर कब्ज़ा कर पायेगा यह बहुत बड़ा और दिलचस्प प्रश्न है? जिसका ऊतर इस लेख में किसी हद तक पाने की कोशिश की गयी है! इस गहमागहमी के बीच अगर  फिर भी किसी एक नेता को चुनना होगा तो यह कहा जा सकता है कि मुजाहिद आलम का 14 महीने के कार्यकाल शायद अख्तरुल के करीब 9 साल के कार्यकाल पर हावी हो गया है, इसलिए  आखरी फैसला फ़िलहाल जनता जनार्दन पर छोड़ दिया जाए तो अच्छा है! 

एआईएमआईएम के सीमाँचल में प्रवेश से इस बार के विधानसभा चुनाव में एक नया तड़का लग गया है और पार्टी पर भारतीय जनता पार्टी को पिछले दरवाज़े से फायदा पहुँचाने का आरोप भी लग रहा है! बेशक एआईएमआईएम की बिहार में एंट्री का श्रेय कोचाधामन के पूर्व विधायक अख्तरुल ईमान को जाता है, जिन्होंने समाजी इन्साफ फ्रंट के बैनर तले पार्टी के अध्यक्ष असदउद्दीन ओवैसी को 16 अगस्त 2015 को किशनगंज के रुईधासा मैदान में जनसभा के लिए आमंत्रित किया! हालाँकि ओवैसी ने करीब एक लाख की भीड़ के समक्ष अपने संबोधन में विधानसभा चुनाव लड़ने की मंशा खुलके जाहिर नहीं की थी, लेकिन सियासी गलियारों में इसकी चर्चा होने लगी थी! कयासों के बीच 12 सितम्बर 2015 को ओवैसी ने हैदराबाद में प्रेस कांफ्रेंस करके अख्तरुल ईमान को बिहार में पार्टी का अध्यक्ष घोषित किया और सीमाँचल के 9 - 10 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया! ओवैसी के मीडिया में औपचारिक एलान के बाद ही -बिहार और एक तरह से प्रमुख पार्टियोँ में हलचल मच गयी! पार्टी के बिहार यूनिट की कमान सँभालने के बाद अख्तरुल ईमान भी खुलकर चुनावी अखाड़े में उतर गए और जोर-शोर से तैयारी में जुट गए!  

आज कोचाधामन विधानसभा छेत्र में मुक़ाबला दिलचस्प हो चूका है और अख्तरुल ईमान की लड़ाई अपने ही पुराने मित्र मुजाहिद आलम से है! यूँ कहे के कभी तू - डाल - डाल तो मैं पात -पात की तरह दोस्ती दिखने वाले और एक दूसरे के हमदर्द अख्तरुल ईमान एवं मुजाहिद आलम में आर या पार की लड़ाई है! जहाँ जनता दल यूनाइटेड के विधायक मुजाहिद आलम, जनता के सामने अपने 14 महीने के कार्यकाल को 'विकास' का नाम दे रहे हैं, और वोट की अपील कर रहे हैं, वहीँ दूसरी तरफ अख्तरुल ईमान अपनी खोई हुई राजनितिक जमीन को तलाश करने में लगे हुए हैं! सोशल मीडिया के माध्यम फेसबुक हो या व्हाट्स ऐप, मोबाइल फ़ोन हो या चौक चौराहे समर्थक अपने नेता को बेहतर बता रहे हैं और जीत का दावा कर रहे हैं! उत्सुकता में दोनों नेताओं के समर्थक फेसबुक / व्हाट्स ऐप पर एक दूसरे पर कीचड़ उछालने से भी नहीं चूकते! यानी किसी भी तरह वह अपने को बेहतर साबित करना चाहते हैं और नेता की जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं! 

कोचाधामन चुनाव क्यूंकि दिलचस्प हो चूका है, इसलिए मेरे अंदर छिपे पत्रकार को टटोलने के लिए मैंने पिछले हफ्ते स्वयं इलाक़े का दौरा किया और निस्पक्ष होके चुनावी रुझान एवं परिणाम का आंकलन करने की कोशिश की! जैसे ही किशनगंज से कोचाधामन विधानसभा छेत्र की तरफ निकला मेरे घर के पास ही कुछ लोग मिले जो एक आवाज़ में बोले कि अख्तरुल ईमान को वोट दूंगा और वह जीत रहे हैं! इन लोगों की बातों से लगा कि अभी भी अख्तरुल ईमान के चाहने वालों की कमी नहीं है और वह मुजाहिद आलम को कड़ी टक्कर देंगे! लेकिन पहले रहमतपाड़ा, फिर अलता हाट एवं आखिर में कोचाधामन तक अख्तरुल - मुजाहिद के बीच समीकरण बड़ा ही दिलचस्प हो गया, लोगों की राय मेरे सफर की शुरुवात से वहां तक काफी बदल चुकी थी! जमीनी हक़ीक़त जानने के बाद कोचाधामन के कुछ गाँव के बुद्धजीवियों से फ़ोन पर मेरी बात हुई तो दोनों नेताओं की स्तिथि काफी हद तक साफ़ हो गयी! 

जब मैंने निस्पक्ष होके आंकलन करना शुरू किया तो दोनों नेताओं में काफी करीबी टक्कर देखने को मिली, लेकिन मुजाहिद आलम लोकप्रियता में थोड़े आगे निकलते दिखे! सच कहें तो मुजाहिद आलम की इस बढ़ी हुई लोकप्रियता का श्रेय भी कहीं-न-कहीं अख्तरुल ईमान को ही जाता है! समाजसेवी मास्टर मुजाहिद आलम किसी समय अख्तरुल ईमान के सबसे ज्यादा चहेते और करीबी रहे हैं! लोग बताते हैं कि मुजाहिद आलम को अख्तरुल ईमान प्यार से 'मर्दे मुजाहिद' कहा करते थे, लेकिन सारा समीकरण इन नेताओं के शुरुवाती दौर के मार्गदर्शक तस्लीमुद्दीन के जनता दल यूनाइटेड में चले जाने से बदल गए! तस्लीमुद्दीन के साथ - साथ मुजाहिद आलम को भी जनता दल यूनाइटेड में जगह मिल गयी और अख्तरुल ईमान राष्ट्रीय जनता दाल (आरजेडी) के बड़े नेता के रूप में उभरे! वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में अख्तरुल - मुजाहिद का कोचाधामन सीट से आमना - सामना हुआ, और एनडीए के जीत की रथ को अख्तरुल ने विराम लगा दिया! 

वर्ष 2010 के बाद कोचाधामन विधायक रहते हुए भी अख्तरुल ईमान ने किशनगंज और सीमाँचल के बड़े नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई, और बिहार विधानसभा में भी उन्होंने अहम मुद्दो पर अपनी आवाज उठाई! वहीँ दूसरी तरफ अख्तरुल को एजुकेशन मूवमेंट फॉर किशनगंज (Education Movement for Kishanganj) के बैनर तले किशनगंज में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्पेशल सेंटर की स्थापना को लेकर चलाये गए मुहीम में काफी प्रशंसा मिली और उनकी एक नई पहचान बनी! 12 अक्टूबर 2011 को किशनगंज में इकठ्ठा हुए करीब ढाई लाख लोगों की भीड़ का भी श्रेय कहीं - न - कही अख्तरुल को भी मिला और उनकी गिनती सीमाँचल के बड़े राजनेताओं में की जाने लगी! अख्तरुल ने  बीच असम में फैले सांप्रदायिक दंगो के खिलाफ भी किशनगंज में अपना विरोध प्रदर्शन किया, बेलवा में स्तिथ नवोदय विद्यालय के प्रिंसिपल के सांप्रदायिक रवैये के खिलाफ भी कड़ा रुख अपनाया, जिससे उनपर विरोधियों दूारा जिले में सांप्रदायिक माहौल फ़ैलाने का आरोप भी लगाया गया! यूँ कहे की वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले तक अख्तरुल के लिए सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन कांग्रेस से गठबंधन होने के कारण उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए आरजेडी छोड़ जनता दल यूनाइटेड का दामन थाम लिया! चुनाव प्रचार के शुरुवाती दौर में अख्तरुल को एहसास हो गया की जनता कांग्रेस प्रत्याशी मौलाना असरारुल हक़ के साथ है और मौके की नज़ाकत देखते हुए उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया! वहीँ उन्होंने यह भी कह दिया कि वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को जीत से रोकने के लिए यह क़ुरबानी दे रहे हैं और 2019 में लोकसभा चुनाव पूरी तैयारी के साथ लड़ेंगे! 

जहाँ अख्तरुल जिले के बड़े नेता के रूप में उभर रहे थे, वहीँ दूसरी तरफ मास्टर मुजाहिद आलम ने जमीनी स्तर पर अपना काम जारी रखा और समाजसेवी के रूप में अपने चित - परिचित अंदाज़ में जनता के बीच अपनी पहचान बनाने में मेहनत करने लगे! चाहे ख़ुशी का माहौल हो या ग़म की घडी, मास्टर मुजाहिद लोगों के बीच मौजूद रहते थे, उनके सामने 2015 के विधानसभा चुनाव में जनता का समर्थन  प्राप्त करना मिशन बन गया! शायद मास्टर मुजाहिद ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि अख्तरुल ईमान खुद ही उनके लिए विधानसभा पहुँचने का रास्ता बना देंगे! अख्तरुल ईमान के पार्टी बदलने से उनकी विधायकी समाप्त हो गयी और कोचाधामन में उपचुनाव हुए जिसमे मास्टर मुजाहिद को जीत मिली! विधायक के रूप में 14 महीने के छोटे अंतराल के कार्यकाल में मास्टर मुजाहिद ने बड़ा जनसमर्थन जुटा लिया है और उनके काफी चर्चे भी हैं! मास्टर मुजाहिद की तारीफ़ में उनके समर्थकों का कहना है कि उनके विधायक उनके बुलावे पर हाज़िर हो जाते हैं, कुछ का कहना था कि एमएलए साहब को जब भी फ़ोन करो बात करते हैं! वहीँ दूसरी तरफ अख्तरुल ईमान के समर्थकों का कहना है उनके नेता निडर हैं, शेर की तरह दहाड़ते हैं, विकास की बात करते हैं, इसलिए उनकी ही जीत होगी! 

आखिर में प्रश्न यह आता है कि कोचाधामन की जनता की आवाज़ कौन हैं! विधानसभा चुनाव में जीत किसकी होगी? अगर मुजाहिद आलम और अख्तरुल ईमान की तुलना करें तो दोनों नेताओं के मजबूत और कमजोर पहलूँ हैं, जिनसे उनकी दावेदारी मजबूत और कमजोर भी होती है! इन नेताओं के कुछ मजबूत और कमजोर पक्ष निम्न हैं!

(i) अख्तरुल के पास जबरदस्त भाषण की क्षमता है, तो इस मामले में मुजाहिद थोड़े पीछे रह जाते हैं! 

(ii) जहाँ जनता के हर वर्ग के बीच मुजाहिद अपने को फिट (सहज) महसूस करते हैं, वहीँ अख्तरुल की पकड़ (पहुँच) एक खास तबके तक ही है! 

(iii) मास्टर मुजाहिद सोशल मीडिया (फेसबुक) का इस्तेमाल बड़े ही अच्छे अंदाज़ में करते हैं, तो शायद अख्तरुल फेसबुक पर लोगों के अपेक्षा के हिसाब से लुभावने अंदाज़ में अपने को पेश नहीं कर पाते! 

ऐसे ही कई और भी पैरामीटर है जहाँ दोनों नेताओं में तुलना की जा सकती हैं!  बेशक दोनों नेताओं का अपना वोटबैंक है और दोनों के चाहने वालों की कमी नहीं है! पते की बात यह है की दोनों के समर्थक / वोटर भी कभी एक ही सुर में बोलते थे, लेकिन उनको समय की माया ने प्रतिद्वेंदि बना दिया है! अगर फिर भी किसी एक नेता को चुनना होगा तो मैं कहूँगा मुजाहिद आलम का 14 महीने के कार्यकाल शायद अख्तरुल के करीब 9 साल के कार्यकाल पर हावी हो गया है, इसलिए जनता जनार्दन पर इसका फैसला छोड़ दिया जाए तो अच्छा है!  आखिर में यह कहना चाहूंगा कि कहीं-न-कही अख्तरुल ईमान हालिया दिनों में अपने दूारा लिए गए फैसलों से परेशान ज़रूर होंगे, दूसरी तरफ क्यूंकि वे एआईएमआईएम पार्टी के बिहार अध्यक्ष भी हैं इसलिए विधानसभा चुनाव के नतीजें उनका और उनकी पार्टी का राज्य में भविष्य भी तय करेगा! 
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