Monday 20 June 2016

बिहार बोर्ड की लापरवाही की कहानी, मेरी जुबानी

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यह कहानी मेरी आपबीती पर आधारित है, यह कहानी है वर्ष 1996 का जब बिहार बोर्ड की लापरवाही की वजह से मेरे साथ-साथ स्कूल के कई साथियों का भविष्य अंधकारमय हो गया था ! भौतिकी विषय में प्रैक्टिकल में 5 नंबर पेंडिंग रखकर बिहार बोर्ड ने कई छात्रों का रिजल्ट अटका दिया था! ऐसा नहीं है की यह अनुभव सिर्फ मेरा रहा है, मेरे जैसे हज़ारों छात्र रहे हैं जिनको बिहार बोर्ड की लापरवाही की वजह से मानसिक तनाव के दौर से गुज़रना पड़ा है! समय आ गया है कि राज्य सरकार बोर्ड के कार्यकलाप को यथोचित करना सुनिशित करे वरना रूबी और सौरभ जैसे टॉपर्स मेघावी छात्रों के सपनों को रौंद कर आगे बढ़ जायेंगे......  

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (बीएसएबी) आजकल इंटरमीडिएट परीक्षा के टॉपर घोटाला की वजह से काफी चर्चा का विषय बना हुआ है! एक निजी न्यूज़ चैनल दूारा इंटरमीडिएट के इस वर्ष के टॉपर रूबी राय (आर्ट्स) एवं सौरव श्रेष्ठ (साइंस) पर किये गए स्टिंग के आधार पर मामले ने तूल पकड़लिया और इसमें बिहार बोर्ड के साथ-साथ राज्य सरकार और शिक्षा मंत्रालय की खूब किरकिरी हुई! मामले के गंभीरता को देखते हुए तवरित करवाई करते हुए मुख़्यमंत्री श्री नितीश कुमार ने शिक्षा विभाग को इस मामले में ऍफ़आईआर दर्ज करने का निर्देश दिया जिसके बाद अफरातफरी मच गई! जाँच के लिए गठित एसआईटी की कारवाई के बाद अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद के साथ-साथ सचिव हरिहर नाथ झा के अलावा बोर्ड के कई कर्मचारियों के साथ-साथ विशुन राय (वीआर) कॉलेज के संचालक बच्चा राय एवं अन्य स्कूलों एवं कॉलेजों के संचालक शक के दायरे में आ गए! मामले की गंभीरता को देखते हुए शिक्षा विभाग ने अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद को कारण बताओं नोटिस जारी किया जिसके बाद वे पद से इस्तीफा देते हुए भूमिगत हो गए हैं! वहीँ बच्चा राय पर भी गिरफ़्तारी का वारंट जारी हो गया है और वह नाटकीय रूप से शनिवार 11 जून को पुलिस की गिरफ्त में आ गए! 



बहरहाल इंटर टॉपर घोटाले के तथ्य सार्वजनिक होते ही बिहार बोर्ड के कार्यकलाप पर बड़ा सवालिया निशान लग गया है? लेकिन अगर तथ्यों पर अगर ध्यान दिया जाये तो यह पहला मौका नहीं है जब बिहार बोर्ड विवादों में घिरा है! अगर पिछले वर्षों के आँकड़ों पर नज़र डालें तो यह ज्ञात होता है कि हर वर्ष किसी-न-किसी वजह से बिहार विद्यालय परीक्षा समिति विवादों में आता रहता है चाहे वो टॉपर्स के नाम हो, चाहे कदाचार मुक्त परीक्षा का आयोजन करवाना हो या फिर पास / फेल हुए छात्रों के रिजल्ट में गड़बड़ी हो! बेशक बिहार बोर्ड की परीक्षाओं में हज़ारों विद्यार्थी शामिल होते हैं इसलिए थोड़ा-बहुत त्रुटि की संभावना हो सकती है, लेकिन काफी भव्य स्तर पर गड़बड़ी होना कई तरह प्रश्न खड़े करता है! बिहार बोर्ड की इस मौजूदा गहमागहमी के बिच मुझे अपने 20 वर्ष पुराने मैट्रिक परिणाम की याद ताज़ा हो गई जब मुझे बोर्ड की लापरवाही की वजह से काफी कठिन दौर से गुजरना पड़ा था! 

बात सन 1996 की है जब मैंने मैट्रिक की परीक्षा दी थी और बेसब्री से अपने रिजल्ट का इंतज़ार कर रहा था, लेकिन परिणाम आने के बाद मेरे होश-व-हवास ही उड़ गए! हुआ यूँ कि उस वर्ष बिहार बोर्ड ने सिलेबस में बदलाव किया और परीक्षा के अंक भी 900 से घटा कर 600 कर दिया था और हर तरफ काफी चर्चा थी परीक्षा में काफी कड़ाई होगी! अच्छी बात थी की बोर्ड ने 6 फ़रवरी 1996 को मैट्रीक परीक्षा की शुरवात भी कर दी और परीक्षा फ़रवरी के महीने में ही समाप्त हो गयी! सिर्फ फिजिक्स (भौतिकी) की परीक्षा पेपर लिक होने की शिकायत के बाद अप्रैल में दोबारा आयोजित की गयी! क्यूँकि मैं पढ़ने लिखने में एक संजीदा छात्र था इसलिए मुझे और मेरे परिवारवालों को यह उम्मीद थी कि मुझे बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त होंगे! बिहार बोर्ड की परीक्षा समय पर समाप्त हो गयी थी इसलिए मुझे और मेरे दोस्तों के साथ-साथ अन्य छात्रों एवं उनके अभिभावकों को यह उम्मीद थी कि परीक्षा के परिणाम समय पर घोषित होंगे! 

उस समय मैट्रिक परीक्षा के रिजल्ट प्रमुख अख़बारों में प्रकाशित किये जाते थे और उसके कई दिन बाद स्कूलों में रिजल्ट भेजा जाता था! इसलिए जून के पहले हफ्ते से ही मैं अपने दोस्तों के साथ किशनगंज शहर के बस स्टैंड स्तिथ अख़बारों के प्रमुख विक्रेता के पास सुबह सवेरे अपने रिजल्ट की तलाश में पहुँच जाते थे! कई दिनों की भागदौड़ के बाद आखिर जून के दूसरे सप्ताह में मैट्रिक परीक्षा परिणाम को आज अख़बार ने प्रमुखता से प्रकाशित किया! काफी धक्कम-धुक्की और मशक्कत के बाद अख़बार के 1 रुपए की प्रति को 5 रुपए में खरीदकर दुकान से दूर जाकर अपना रिजल्ट ढूढ़ने लगा और आख़िरकार चार या पन्ने पलटने के बाद मुझे नेशनल हाई स्कूल का कॉलम दिखाई दिया! एक पल भी देर किये हुए बिना सबसे पहले फर्स्ट डिवीज़न छात्रों के बिच पहले अपना रोल नंबर ढूँढा तो निराशा हाथ लगी, उसके बाद सेकंड डिवीज़न और आखिरकार थर्ड डिवीज़न की लिस्ट में दूर-दूर तक मेरे पास होने का कोई जिक्र नहीं था! आख़िरकार मायूसी के साथ निचे नज़र दौड़ाई तो पेंडिंग लिस्ट में मेरा रोल नंबर था, राहत की बात यह थी कि मेरे अलावा मेरे कई दोस्तों के नाम भी इस लिस्ट में था! 

हालाँकि मेरे पिताजी को मुझ पर पूरा भरोसा था लेकिन उस वर्ष रिजल्ट का पैटर्न देखकर जिसमे करीब 9 प्रतिशत छात्र ही सफल हुए थे उनके भी दिमाग में थोड़ी-थोड़ी शंका आ गयी कि मैं पास हुआ हूँ या नहीं!  हैरानी की वजह यह थी कि मेरे अलावा मेरे कई दोस्तों जिनको स्कुल में अच्छे विद्यार्थियों में गिना जाता था उन सबका रिजल्ट पेंडिंग हो गया था! क्यूँकि मेरे कई सहपाठी जो पढ़ने में अच्छे थे उनका भी रोल नंबर पेंडिंग सूचि में था इसलिए थोड़ी सी दिल में राहत थी और ऐसी आशा थी कि शायद बिहार बोर्ड से कोई चूक हुई है! अब हम सबको इंतज़ार मार्क्स (अंकों) के क्रॉस्लीस्ट का था जिसमें अर्जित नंबर का ब्यौरा होता था और जिस विषय में पास / फेल या रिजल्ट पेंडिंग होता था उसका भी वर्णन दिया जाता था! 

खैर काफी आशंकाओं के बिच कई दिन गुजारने के बाद आख़िरकार 12 जून 2016 को यह सुचना मिली की स्कूल में क्रॉस्लीस्ट आ गया है! एक छण गवाए साईकिल उठा कर तेज़ी से स्कूल की तरफ भागा और क्लॉस टीचर के पास पहुँचा जो क्रॉस्लीस्ट से छात्रों को मार्क्स (अंकों) का ब्यौरा बता रहे थे! उन्होंने मुझे देखते ही मुबारकबाद दी कि मैं फर्स्ट डिवीज़न लाया हूँ! जब मैंने अपने  बारे में तहकीकात की तो आँखों में आँसू छलक गए, सारे विषयों में पास था लेकिन फिजिक्स (भौतिकी) के प्रैक्टिकल परीक्षा के 5 (पाँच) अंक नहीं जुटने के कारण रिजल्ट पेंडिंग था! ख़ुशी की बात थी कि वह 5 नंबर नहीं जुड़ने के बावजूद मैं फर्स्ट डिवीज़न से पास हो गया था और मेरे कई दूसरे दोस्त भी जिनका रिजल्ट पेंडिंग था फर्स्ट डिवीज़न प्राप्त होने पर एक दूसरे को बधाई दे रहे थे!जब मैंने हेडमास्टर साहब से पूछताछ की तो पता चला कि स्कूल ने प्रैक्टिकल परीक्षा के नंबर बोर्ड को भेज दिया है इसलिए गड़बड़ी वहीँ हुई है! बात में सत्यता भी थी क्यूँकि विज्ञान के अन्य विषयों जीविज्ञान (बायोलॉजी) एवं रसायन शास्त्र (कैमिस्ट्री) के प्रैक्टिकल के अंक जुड़े थे!

बिहार बोर्ड की छोटी से लापरवाही से मेरे जैसे कई छात्रों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया था और आखरी पड़ाव पटना था! साल 1996 में पटना आना भी अपने आप में एक परीक्षा ही था, फिर भी अपने रिजल्ट को दुरुस्त करवाने बिहार बोर्ड के मुख्यालय पहुँचा! बोर्ड ऑफिस के बाहर का नज़ारा अपने आप में भयभीत करने वाला था, हज़ारों छात्र बाहर रिजल्ट में हुई गड़बड़ी की समस्याओं के साथ खड़े थे और मेरे जैसे 15 वर्ष के नवयुवक के लिए अंदर जाना तो बिलकुल नामुमकिन ही लग रहा था! पटना में रुककर कई दिनों तक बोर्ड ऑफिस के चक्कर लगाने के बाद जब बोर्ड ऑफिस के अंदर स्तिथ सम्बंधित कार्यालय में नहीं पहुँच पाया तो यही बेहतर समझा कि वापस घर यानि किशनगंज जाया जाये! थक हारकर वापस किशनगंज गया और अपने पिताजी को सारी बातें बताई जिससे वे भी चिंतित और निराश हो गए! 

आख़िरकार किशनगंज के ही एक सरकारी स्कूल शिक्षक जिनके बोर्ड ऑफिस में आना - जाना लगा रहता था उन्हें मेरे पिताजी ने मेरे रिजल्ट के बारे बताया! उन्होंने मेरे समस्या को सुनने के बाद कहा कि रिजल्ट में सुधार हो जायेगा और एक-दो दिनों के अंदर ही वह पटना जाकर इसे ठीक करवा लेंगे! उनकी बातों से हमें उम्मीद जगी कि रिजल्ट में सुधार हो जायेगा और करीब एक हफ्ते के अंदर प्रैक्टिकल के 5 (पाँच) नंबर जोड़कर मेरे पूर्ण रिजल्ट को लेकर वह हमारे घर आये, लेकिन उसके लिए चाय - पानी के लिए रक़म भी बोर्ड ऑफिस में अगर सभ्य अंदाज़ में बोलूँ तो नज़राने के रूप में चुकानी पड़ी थी! पूर्ण मार्कशीट को देख कर मेरे आँखों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी क्यूँकि 1996 में ऐतिहासिक रिजल्ट जिसमें सिर्फ 9 प्रतिशत परीक्षार्थी पास हुए थे मैं फर्स्ट डिवीज़न से पास हुआ था! लेकिन बिहार बोर्ड की लापरवाही की वजह से रिजल्ट का पेंडिंग होना और उसके बाद के जद्दो जहद की दास्तान आज भी मेरे दिमाग में ताज़ा है! खासकर 20 साल बाद चर्चित इंटरमीडिएट टॉपर स्कैम के बाद फिर यह ख्याल दिल में आ रहा है कि कुछ लोगों (पदाधिकारयों) के निजी स्वार्थ की वजह से कितने मेरे जैसे मेघावी छात्रों का भविष्य अंधकार में डाल दिया जाता है! अब समय आ गया है कि राज्य सरकार बिहार बोर्ड के कार्यकलाप को यथोचित करना सुनिशित करे वरना रूबी और सौरभ जैसे टॉपर्स मेघावी छात्रों के सपनों को रौंद कर आगे बढ़ जायेंगे और हम और आप मूकदर्शक ही रहेंगे!  
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