Wednesday 8 June 2016

नजरिया!! रोडरेज, सिर्फ वर्चस्व का दिखावा का एक मानसिक विकार?

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बिहार में करीब एक महीने से आदित्य सचदेवा हत्याकांड काफी सुर्ख़ियों में रहा है और इस घटना का राजनितिक पार्टियों ने अपने-अपने तरीक़े से जमकर राजनीतिकरण भी किया है! करीब एक महीने पहले शनिवार, 7 मई 2016 को घटी इस घटना का राजनितिक रूप लेना भी स्वभाविक था क्यूँकि इसमें सत्तारूढ़ पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) की एमएलसी मनोरमा देवी के पुत्र राकेश रंजन यादव उर्फ़ राकी मुख्य आरोपी हैं! बेशक गया के बड़े व्यापारी केशव चाँद सचदेवा के बेटे आदित्य की मौत ने राज्य की कानून व्यवस्था और शासन पर भी सवालिया निशान लगा दिया है! इस दुःखद घटना की जितनी निंदा की जाये कम है और कानून के दायरे में दोषी को सख्त-से-सख्त सज़ा दी जानी ही चाहिए! लेकिन आदित्य की बिच सड़क पर चलती गाड़ी पर गोली मारकर हत्या करने की वारदात को आज के परिदृश्य में समाज और देश को गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है! इस घटना ने एक बार फिर हमें रोडरेज के तहत मामूली कहासुनी से होने वाली घटनाओंजिसका भयानक रूप हत्या है आदि पर चर्चा करने पर मजबूर कर दिया है! 



जरा हम गया में घटी वारदात पर गौर करें तो इस घटना के कई पहलु निकल सकते हैं, लेकिन उनमें मुख्यतः पैसे के नशे में चूर झूठे वर्चस्व (रसूख) का दिखावा और मानसिक विकार के लक्षण मिलेंगे! सच तो यह है कि आज इस तेज रफ़्तार दौर में सड़क पर वर्चस्व का दिखावा आम बात हो गयी और और इस तरह की घटनाएँ लगभग हर दिन देश के किसी न किसी प्रांत में घटती है! सड़क पर ऊँची आवाज में कान और दिमाग को परेशान करनेवाली हॉर्न बजाना, बिना कोई सिग्नल दिए हुए तेज़ी से ओवरटेक करके आगे बढ़ना या हलकी सी ठोकर लग जाये तो लड़ाई-झगड़ा करना आज आम बात हो गयी है! यूँ कहें की अगर असहिषुणता का अगर कहीं उचित उदहारण अगर देखना हो तो भारतवर्ष में किसी भी मुख्य सड़क पर चले जाइये, सामाजिक मूल्यों और नियमों का शायद इससे ज्यादा कहीं उलंघन्न नहीं होता होगा! 

समाज में सभ्य अंदाज़ और शालीनता से रहने वाले लोग भी जब सड़क पर आते ही अपने-अपने तरीके से अपनी आर्थिक स्तिथि और हैसियत का प्रदर्शन करते हैं जिसमे वाहन एक मुख्य माध्यम बन गया है! सड़क पर पैदल चलने वाले राहगीरों या साईकल पर चलने वाले लोगों से मोटरसाईकल सवार वर्चस्व में अपने को ऊँचा समझते हैं, इसी क्रम में मोटरसाईकल सवार से बेहतर अपने को छोटी गाड़ियों में घूमने वाले समझते हैं, और सबसे ज्यादा रोब बड़ी गाड़ियों में बैठे लोगों में होती है! आलम तो यह है बड़ी गाड़ियां जिसमे फॉर्च्यूनर, स्कार्पियो, टाटा सफारी या स्टॉर्म, इन्नोवा, आदि शामिल हैं अगर सड़क पर आ गई तो उसके बाद तो सब कुछ भगवान भरोसे ही है! इन गाड़ियों की कई विशेषताएँ हैं जैसे आरी-तिरछी चलना, परेशान करने वाली तेज़ हॉर्न बजाकर या बार-बार डिपर जलाकर पास माँगना, और अगर पास नहीं मिले तो बिना कोई परवाह करते हुए साएं से ओवरटेक कर लेना आदि शामिल हैं, जिनको ऐक सभ्य अंदाज़ में अवगुण ही कहना ठीक होगा! मेरे पास स्वयं एक छोटी गाड़ी है, इसलिए जैसा की मैंने पहले लिखा पैदल चलने वालों, साईकल या मोटरसाईकल सवारों से स्वाभाविक तौर पर बेहतर समझने की प्रवृति आ जाती है, लेकिन जैसे ही कोई एसयूभी (बड़ी गाड़ी) पीछे से हॉर्न देती है तो बड़े ही शांत अंदाज़ में पहली ही फुर्सत में पास देने में अपनी भलाई समझता हूँ! 

एक सभ्य समाज में सड़क पर वर्चस्व के बेहूदा प्रदर्शन को कभी नहीं सराहा जा सकता है बल्कि यह सत्य से परे महज़ एक ढकोसलापंति है! 19 वर्षीय आदित्य सचदेवा की निर्मम हत्या का दुःख उसके परिजनों को जीवनभर एक गहरे घाव की तरह टीस देगा! पैसे और रसूख के नशे में चूर एक बिगड़ैल बेटे ने एक हँसते-खेलते परिवार को अपनी नादानी और हैवानी प्रवृत्ति से उजाड़ दिया! इस दुःख की घड़ी में आदित्य के परिवारवालों के प्रति मैं पूरी संवेदना व्यक्त करने के साथ-साथ यह भी सबक लेता हूँ अपने घर से बाहर दिखावटी वर्चस्व से किसी परिवार, समाज, राष्ट्र और पूरी इंसानियत का नुकसान है! लेकिन फिर भी अगर आप आदित्य की बेवजह मौत से सबक नहीं लेते हैं तो समझ लें आप मानसिक विकार से पीड़ित हैं! आपमें और एक पागल हाँथी में कोई फ़र्क़ नहीं, फिर या तो अपने मानसिक विकार पर काबू पाईये वरना देश का कानून तो आपको उचित सज़ा दिलवाएगा ही जो पागल हाँथी की तरह बेड़ियों में जकरने से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है! लेकिन कड़ी कानून-व्यवस्था कभी भी स्थायी उपाय नहीं हो सकता है, इस तरह की घटनाएँ होती रहेंगी और रसूख वाले पैसे और ताकत में नशे में चूर होकर तमाम हदों को पार करते रहेंगे! समय की यह माँग है कि हम स्वयं अपनी अंतर-आत्मा में झाँक कर देखें और अपने अंदर की कमियों पर विचार कर एक अच्छा और जिम्मेदार इंसान बनने की पूरी कोशिश करें! शायद हमारी छोटी से पहल समाज, देश और  दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है और रोडरेज जैसी घटना में मारे गए आदित्य जैसे लोगों को सच्ची श्रृद्धांजलि मिल सकती है! 
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