Wednesday 10 August 2016

आयरन लेडी - इरोम शर्मीला की 16 वर्ष की क़ुरबानी को सलाम

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आमतौर पर अगर हम और आप एक वक़्त का खाना किसी कारण वश नहीं खा पाते हैं तो हालत ख़राब हो जाती है और शरीर ज़वाब दे देता है! लेकिन कोई मनुष्य वो भी एक महिला अगर आम लोगों के हक़ के लिए 16 वर्ष तक भूख हड़ताल (अनशन) पर बैठे तो एक बहुत ही बड़े आश्चर्य और हिम्मत की बात है! जी हाँ मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के ख़िलाफ़ लगातार 16 वर्षों से अनशन कर रही सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मीला ने यह ऐतिहासिक कार्य किया है, जो देश ही नहीं बल्कि दुनिया में एक कृतिमान है! एक भारतीय नागरिक और प्रकृति की सबसे सर्वश्रेष्ठ कृति इंसान होने के नाते कम-से-कम हमलोग सहानुभूति तो दिखा ही सकते हैं! वरना बौद्धिक ज्ञान और इंसानियत के पाठ बेमानी लगने लगेंगे! इसलिए  इस लेख के माध्यम से शायद इरोम शर्मीला की 16 वर्षीय लंबे साहसिक कार्य की सराहना करने की चेष्टा कर रहा हूँ!  




मंगलवार (9 अगस्त) को इरोम ने 26 जुलाई 2016 को अदालत में दिए गए अपने बयान के अनुसार अपना अनशन तौड़ दिया है! इरोम ने अपना शहद के बूंद को चखते हुए अपने अनशन को तोड़ा और इस दौरान वे काफी भावुक हो गयी! इरोम मणिपुर के एक साधारण परिवार की महिला है और उनके इस बलिदान ने ज्यादातर देशवासियों का ध्यान आकर्षित नहीं किया! उनके समर्थन में न तो हजारों की भीड़ है और न कोई राजनितिक दल इरोम की माँग को गंभीरता से ले रहा है! हो सकता है इरोम के बलिदान को लोग या तो समझ नहीं प् रहे या जानबूझ कर अनजान बन रहे हैं! क्योंकि यह मामला यह सात-बहनों वाले उत्तर-पूर्वी राज्यों में बसा छोटे से राज्य मणिपुर से जुड़ा है, इसलिए राष्ट्रिय मीडिया भी इस खबर को सिमित ही कवरेज दे रहा है!

इरोम ने मंगलवार को अफस्पा के खिलाफ 16 साल का अनशन तोड़ने के बाद तमाम मुद्दों पर अपनी राय रखी। उन्होंने केंद्र सरकार से अफस्पा समेत सभी कठोर कानून वापस लेने की मांग की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोई संदेश देने के सवाल पर इरोम ने कहा कि अफस्पा के बगैर सरकार सीधे जनता से संपर्क साध सकेगी। लिहाजा देश को अहिंसा का रास्ता अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत खुशहाली सूचकांक में 105वीं पायदान पर है, इससे पता चलता है कि देश को अहिंसा की कितनी दरकार है।

उन्होंने हैरानी जताई कि क्यों कुछ कट्टरपंथी समूह राजनीति में उनके आने के खिलाफ हैं। कट्टरपंथियों से डर के सवाल पर इरोम ने कहा कि अगर ऐसे लोगों को लगता है कि उनकी हत्या से कोई बदलाव आएगा, तो वह मौत का भी सामना करने को भी तैयार हैं। इरोम ने माना कि राजनीति का उन्हें कोई अनुभव नहीं है और उनकी पढ़ाई भी काफी कम है। उन्होंने स्पष्ट किया अफस्पा हटाने के लिए उन्हें ताकत चाहिए और इसके लिए हर जरूरी कदम उठाऊंगी। सामाजिक कार्यकर्ता ने 20 अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों को साथ लाने और मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह को हराने का संकल्प लिया।

अंत में कहना चाहूंगा कि एक भारतीय नागरिक और प्रकृति की सबसे सर्वश्रेष्ठ कृति इंसान होने के नाते कम-से-कम हमलोग सहानुभूति तो दिखा ही सकते हैं! वरना बौद्धिक ज्ञान और इंसानियत के पाठ बेमानी लगने लगेंगे! इसलिए  इस लेख के माध्यम से शायद इरोम शर्मीला की 16 वर्षीय लंबे साहसिक कार्य को नमन करने की चेष्टा कर रहा हूँ!  भारत का  एक आम नागरिक होने के नाते मुझे मणिपुर के हालात के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है, हो सकता है आने वाले समय में देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए शायद सरकार  उनकी बात मान भी  ले! अगर यह मुमकिन होता है तो इरोम को उनके 16 वर्ष की कुर्बानी का फल ईनाम) मिल जायेगा!
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