Tuesday 10 March 2015

विचार! एएमयू के नाम पर शैक्षिक आंदोलन, उसका राजनीतिकरण एवं बुद्धजीवी वर्ग के कर्तव्य

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चेतवानी: यह विचार पूरी तरह निजी हैं और एक अहम मुद्दे के इर्द-गिर्द लिखी गयी है, अगर कोई इससे आहत होते हैं तो छमाप्रार्थी हूँ, लेकिन एक निवेदन है की मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें!


पूर्णिया कमिश्नरी ने हाल के वर्षों में शिक्षा के छेत्र में कई आंदोलन देखें हैं जिसमे टीईटी शिक्षकों की बहाली, नियोजित शिक्षकों के वेतनमान में वृद्धि आदि मुख्यतः शामिल हैं, जिससे सम्बंधित संगठन समय-समय पर धरना-प्रदर्शन करते रहते हैं ! बिहार के उत्तर-पूर्व में स्तिथ इस कमिश्नरी में पूर्णिया, किशनगंज, अररिया एवं कटिहार जिले शामिल हैं जहाँ शिक्षा के साथ-साथ आम-लोगों की ज़िंदगी भी आर्थिक रूप से खस्ताहाल है! लेकिन करीब 5 वर्ष पूर्व (2009-10) इस कमिश्निरी के किशनगंज जिले में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के केंद्र की स्थापना को लेकर एक नए शैक्षिक आंदोलन का उदय हुआ जो अपने आप में ऐतिहासिक था! मुद्दा था एएमयू के केंद्र की स्थापना के लिए बिहार सरकार द्वारा उचित भूमि प्रदान करने में आना-कानी करना! 

Protest for AMU Kishanganj


मामले की गंभीरता और सरकार की अनदेखी से चिंतित होके बुद्धजीवियों ने किशनगंज जिले में "किशनगंज एजुकेशन मूवमेंट" संगठन की स्थापना की, साथ ही साथ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी 'एएमयूसीसी' और फिर बाद में 'ह्यूमन चेन' जैसे संगठन भी वजूद में आये! हालाँकि संगठनों के नाम एवं करता-धर्ता सदस्य अलग-अलग थे लेकिन मक़सद एक ही था किशनगंज में हर हाल में एएमयू के केंद्र की स्थापना! एक शैक्षिक मुद्दे को लेकर इन संगठनों के सदस्यों में जितनी निष्ठा एवं जोश था वो अपने आप में ऐतिहासिक था! इन संगठनों के सदस्य शिक्षित थे और विभिन्न छेत्रों से आकर एक महत्वपूर्ण मुद्दे के लिए एक प्लेटफार्म पर एकत्रित हुए थे, जिनसे आम लोगों के अलावा राजनीतिज्ञ भी काफी प्रभावित थे! लेकिन जैसा अमूमन देश के हर आंदोलन में होता है वैसा एएमयू किशनगंज आंदोलन में भी ऐसा ही हुआ और धीरे-धीरे इस मुद्दे पर काम करने वाले संगठन एवं उनके सदस्य राजनीतिज्ञों से प्रेरित होने लगे! चाहकर या ना चाहकर भी इन संगठनों को अपने कार्यकर्मों में इन राजनीतिज्ञों को मंच साझा करने का अवसर प्रदान किया, जहाँ पर यह राजनीतिज्ञ बढ़-चढ कर अपना बखान करते नहीं थकते थे! चाहे 30 सितम्बर 2011 को दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर 'एएमयूसीसी' दूवारा आयोजित एएमयू मुद्दे पर संगोष्ठी हो या 12 अक्टूबर 2011 को किशनगंज जिला मुख्यालय में "किशनगंज एजुकेशन मूवमेंट" के बैनर तले  आयोजित महाधरना हो, राजनीतिज्ञों ने मौके का भरपूर फायदा उठाया और कई मौकों पर इसका जिक्र भी किया! 

एएमयू किशनगंज के नाम पर गैर-सरकारी संगठनों के अथक प्रयास, दिन-रात की मेहनत एवं काफी मशक़्क़त से इकठ्ठा किये गए फण्ड को ताक पर रख कर ये राजनीतिज्ञ अपनी राजनितिक रोटी सेकने लगे! यही नहीं इन संगठनों के योगदान को पूरी तरह भुला कर  राजनीतिज्ञों ने विधानसभा एवं लोकसभा के चुनावी सभाओं में एएमयू किशनगंज की स्थापना के संघर्ष में अपना नाम का बखान सबसे आगे किया! यह सत्य है की सत्ता की चाहत में अच्छे-अच्छों की नियत डगमगा जाती है, लेकिन पढ़े-लिखे, सज्जन रूपी एवं बढ़-चढ़ कर अपने उच्च-सिद्धांत का दावा करने वाले राजनीतिज्ञ भी जरा भी नहीं हिचकिचाये! यहाँ तक की अख़बार को दिए गए इंटरव्यू में एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ ने जमकर एएमयू किशनगंज के लिए समर्पित संगठनों एवं उनके सदस्यों की जमके आलोचना की जिसके की वह स्वयं उपदेशक थे!  

हालाँकि अस्थाई बिल्डिंग में एएमयू किशनगंज की शैक्षणिक गतिविधियाँ वर्ष 2013 में प्रारम्भ हो गयी है और फ़िलहाल  बीएड एवं एमबीए का पठन-पाठन का कार्य भी चल रहा है! क्यूंकि भारत सरकार ने  एएमयू किशनगंज के लिए करीब 136 करोड़ के टोकन बजट की स्वीकृति दी है इसलिए यह आशा है कि शीघ्र ही भवन निर्माण का कार्य प्रारम्भ हो जायेगा! लेकिन बहुत ही अफ़सोस की बात है कि  एएमयू किशनगंज के नाम से प्रारंभ हुए एक शुद्ध शैक्षिक आंदोलन का धीरे-धीरे राजनीतिज्ञों ने भरपूर लाभ उठाया! शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर इस छेत्र के इतिहास में पहली बार बुद्धजीवी समाज एक मंच पर साथ आया था, लेकिन राजनीती के दीमक ने उसको धीरे-धीरे कमजोर कर दिया! किशनगंज और पूर्णिया कमिश्नरी के जिलों में ऐसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिसके लिए बुद्धजीवी वर्ग को एक-मंच पर आने की ज़रूरत है और इनका उचित हल निकल सकता है! लेकिन ऐसा तभी संभव है जब बुद्धजीवी वर्ग राजनीतिज्ञों से मुद्दों के आधार पर चर्चा करे और जहाँ वे सही से कार्य नहीं कर रहे हो उसका एहसास दिलाएं, नाकि उनकी चापलूसी करें और फेसबुक (Facebook) या व्हाट्सएप (WhatsApp) में अपने वर्चस्व को दिखाने के लिए इन राजनीतिज्ञों के साथ या इर्द-गिर्द खड़े होकर तस्वीर खिंच कर शेयर करे! इस तरह की गतिविधि और अनदेखी करने से बुद्धजीवी वर्ग एवं काम-शिक्षित लोगों में कोई अंतर नहीं रह जायेगा और राजनीतिज्ञ इस अज्ञानता और अनदेखी का भरपूर लाभ उठाते रहेंगे जो की अनुचित है! 

चेतवानी: यह विचार पूरी तरह निजी हैं और एक अहम मुद्दे के इर्द-गिर्द लिखी गयी है, अगर कोई इससे आहत होते हैं तो छमाप्रार्थी हूँ, लेकिन एक निवेदन है की मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें!
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