Thursday 1 October 2015

सीमांचल पिछड़ा क्यों? एक वजह यह भी! डॉ. मुमताज़ नैयर

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छ बातें मुझे बहुत परेशान करती है, पर बेबस हूँ, लाचार हूँ...कुछ कर नही कर सकता, उस मिटटी के लिए जहाँ में जनम लिया, जहाँ पला बढ़ा, जहाँ में स्कूली शिक्षा प्राप्त किया...जी रोने को करता है...उस धरती पर जहाँ प्यार तो बहुत है पर लोग आपसी झगड़े, हसद और जलन में उलझे हुए हैं...सबसे बड़ी चिंता युवाओं की है, स्कूल जाते और न जाने वाले बच्चों की है...क्यों कुछ लोग तुम्हारे भविष्य के साथ खेल रहे हैं...क्यों नही तुमको बता रहे हैं कि तुम्हारे लिए अच्छा किया है और बुरा किया है?


80 और 90 के दसक में इस इलाके में में यह नारा दिया गया कि "पढ़ लिख कर कुछ नही होता"...दिल्ली पंजाब जाओ और पैसे कमाओ...कुछ लोगों की मजबूरी थी और कुछ लोगों को  पैसे की लालच और आराम परस्त ज़िन्दगी की लत.. नतीजतन यह हुआ, वैसे परिवार जो आर्थिक रूप से सक्षम थे, वो भी अपने नन्हे मुन्नों को महानंदा एक्सप्रेस ट्रैन में बिठा दिए...बच्चे निकल पड़े पैसे कमाने...पैसे आने लगे...माँ बाप खुश हुए...लोग अक्सर अपने नन्हे मुन्नों की कमाई से चौक चौराहे पर चाय पीते हुए और पान चबाते हुए,  देखे गए ...और एक अनपढ़ या फिर कहें illiterate /semi illiterate समाज कि नींव रखी...

कुछ लोगों की आर्थिक हालात में सुधार भी हुई..कुछ कच्चे मकान पक्के में तब्दील हो गए...पर क्या हम सच मुच में विकसित हुए...? हम तालीम/शिक्षा से दूर होते चले गए...जिन बच्चों को वालेदिन/अभिभावक की निगरानी में तालीम लेना था वो दिल्ली और बड़े महानगरों में होटल्स/ढाबा में काम करते पाये गए...चंद पैसों के लिए हमने दो पीढ़ी को अनपढ़ और अकुशल(Unskilled) बना दिया...सिर्फ इतना ही नहीं..उन चाँद पैसों के साथ बहुत सी बुराइयां भी एक साफ़ सुथरे समाज में आई..जैसे की आज बहुत से युवकों को शराब की लत लग चुकी है...पिछले एक दसक में किशनगंज जिले में एड्स(HIV) में 300% की दर से बढ़ोतरी दर्ज की गयी है...कहाँ से आया ये HIV VIRUS ?

80 और 90 के दसक में कुछ खासे मजबूरी रही होगी पर सन २००० के बाद इलाके में कुछ हद तक आर्थिक स्तिथि में सुधर हो चुकी थी...अगर किसी में सुधार नहीं हुआ तो वो है शिक्षा और उच्च शिक्षा! पूरे भारत में सब से ज़यदा स्कूल ड्राप आउट का रिकॉर्ड इस इलाके के लिए दर्ज है...

मुझे तो इस बात की हैरानी होती है, की जो अच्छे घर(आर्थिक रूप से संपन्न) के युवा है वो दिल लगाकर क्यों नहीं पढ़ते..इतना बताते चलूँ...इन में से बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो सही से गाइड किया जाये तो IIT IAS जैसे exams भी चुटकी में निकाल सकते हैं...फिर आप पूछेंगे यह युवा करते क्या हैं?

यह युवा अक्सर आपको नेतागीरी करते मिल जायेंगे...यह युवा अपने आपको MP /Minister समझ बैठे हैं...जब इनको उच्च शिक्षा प्राप्त करना था या फिर अपना करियर बनाना था तब ये लोग नेताओं के साथ घूमते नज़र आ रहे हैं  ..और अपना आने वाला कल अन्धकार में डाल रहे हैं...में यह नहीं कहता हूँ की आप राजनीति नहीं कीजिये...जरूर कीजिये..दिल खोलकर कीजिये...पर पहले आप शिक्षित तो हो जाइये..पहले आप हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का स्थापित वकील तो  बन जाइये. एक entrepreneur बन जाइये..एक पालिसी मेकर बन जाइये...एक MLA या भावी MLA के पीछे घूम कर किया मिलेगा बंधू? शायद चंद पैसे आपको मिल जाइये...फ्री में दिल्ली या पटना भी घूम लें...उसके आगे कुछ नहीं मिलने वाला आपको...

90 के दसक  में भूमंडलीकरण शुरू हुआ, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत के सरजमीं पर पैर रखी...जहाँ देश आगे बढ़ा हम पीछे चलते चले गए...एक हज़ार में अगर 5 युवक सफल हो गया तो वो सफलता नही है...और यह तो हर दौर में होगा..सफलता तो तब कहलायेगा जब 1000  में  कम से  कम 500  सफल हो...जिस रफ़्तार से देश के बाकी हिस्से आगे बढे हैं..क्या हम उसको पकड़ सकते हैं...एक अनपढ़ और अकुशल समाज के साथ?...सोचना आपको है...हमको है...अभिभावकों को है...और समाज के बुद्धिजीविओं को है...अब नहीं समझे तो कभी नहीं समझेंगे....आने वाला कल कठिनाइयों से भरा होगा...कहीं तुम भी भेर बकरियों के तरह कुचले न जाओ...इसका ख्याल रखना...

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धन्यवाद!

आपका अपना!

डॉ. मुमताज़ नैयर

सोउथेम्पटन, इंग्लैंड!
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