Wednesday 15 June 2016

नज़रिया! सिख अल्पसंख्यक संस्था से एमजीएम (MGM) मेडिकल कॉलेज का सफर

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          कभी मदर टेरेसा और पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के हाथों शिलान्यास होने वाला माता गुजरी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज बहुत कम समय में कई सदी का सफर तय कर लिया। इतने बड़े प्रभावशाली अंतरास्ट्रीय छवि वाले शख्सियत के बदौलत हिंदुस्तान ही नहीं, विश्व अस्तर पर प्रसिद्धि पाने में समय नहीं लगा फलस्वरूप विभिन्न अंतरास्ट्रीय संस्थाओं से खूब वित्तीय सहायता प्राप्त हुआ। चूँकि करतार सिंह उस समय संचालक थे और सिख समुदाय से ये कॉलेज जुड़ा हुआ था इसलिए अमेरिका कनाडा जैसे पश्चिमी देशों से भी सिखों का भरपुर मदद मिला। समय गुजरता गया और दीमक के तरह इस सिख अल्पसंख्यक के नाम से शुरू होने वाला मेडिकल कॉलेज में सिख संस्थापकों का दमन शुरू हुआ और फिर धीरे धीरे किसी बहरी ताकत ने पुरे कॉलेज पर कब्ज़ा कर लिया मानो सत्ता अंग्रेजों के हाथ चली गई। कॉलेज का संचालक बदला प्रशासन नए लोगों के हाथ चली गयी और कॉलेज धीरे धीरे राजनीती का अड्डा सा बन गया जहाँ डॉक्टरी की पढाई के साथ साथ सामानांतर रूप से राजनितिक क्रियाकलाप पर भी काम होने लगा। और लोक सभा से लेकर पंचायत अस्तर तक के चुनाव की रणनीति तैयार होने लगी। ये बदलाव का सफर रोमांचक जरूर है पर कॉलेज उस समय एक बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा था कुछ समय के लिए ऐसा लग रहा था कि ये संस्था अपनी मूल उद्देश से भटकती नज़र आ रही है। शुरूआती दौर में जब कश्मीर व पंजाब के नौजवान जत्थेदार सडकों बाज़ारों में नज़र आते थे आज भगवाकारन हो जाने से एक्का दुक्का ही नज़र आते हैं।




सुरजापुरी छात्र कोटा
किशनगंज भूगोलीय दृष्टिकोण से बिहार के बिलकुल एक कोने में है और कई दशकों तक जिले को बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ा और वो अपने बदकिस्मती और पिछड़ेपन की मार झेलती रही। 25 -30 वर्षों से किशनगंज में सिख अल्पसंख्यक के नाम पर चल रहे एक मात्र मेडिकल कॉलेज जहाँ बीमार गरीबों के जिस्म पर पैसे वाले प्रैक्टिस कर डॉक्टर बनते रहे हैं। मानो ये गरीब किसी लेबोरेटरी का सामान हों। किसी ज़माने में जब कॉलेज का कमान करतार सिंह के हाथ हुआ करता था तब किशनगंज के नेता तस्लीमुद्दीन ने कॉलेज में कुछ सीट की मांग बड़ी जोर शोर से उठाया था ताकि कुछ अस्थानीय छात्र को डॉक्टर बनने का मौका मिल सके। पर बदलते वक़्त के साथ साथ सब ठंडा पर गया। आज किशनगंज जिला में एक भी बाहरी नेता नहीं है सब अपने हैं, सब सुरजापुरी है, पर इस मुद्दे पर खामोश हैं। 

सुरजापुरी नौजवानों को आत्मनिर्भर बनाने में असफल
एक तरफ किशनगंज से हज़ारों कीे संख्या में नौजवान प्रदेश जाने पर मज़बूर है , जो प्रदेश में अपनी कार्य कुशलता का लोहा मनवा रहे है पर अपने जिला के मेडिकल कॉलेज में उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा है आज कई हज़ार स्टाफ बाहर से आ कर कॉलेज के विभिन्न विभागों में काम कर रहे हैं। कॉलेज प्रशासन खाना पूर्ति के लिए एक-आध स्टाफ रख कर ये दिखाने की कोशिश किये हैं कि कॉलेज को लोग संप्रदाय अथवा क्षेत्रवाद के नज़र से न देखे। कुछ दिन पहले कॉलेज के एक मुस्लिम स्टाफ पर बलात्कार जैसे घिनौना आरोप 45 -50 साल की एक औरत ने लगाया गया था। कॉलेज प्रशासन ने त्वरित करवाई करते हुए उसे नौकरी से निकाल दिया पर पुलिस अनुशंधान में आरोप झूठा निकला। अब शक होना लाज़मी है कि एक मुस्लिम स्टाफ को अगर ऐसे ही नौकरी से निकाल दिया जाता तो बवाल और बदनामी दोनों होना तय था इसी से बचने के लिए ये बलात्कार जैसा झूठा षड्यंत्र रचा गया।


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