Tuesday 5 July 2016

नज़रिया! क्या इफ़्तार पार्टी के नाम पर पॉलिटिकल डिप्लोमेसी उचित है?

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रमज़ान के पवित्र महीने के आते ही हर तरफ इफ़्तार पार्टी देने और शामिल होने का चलन आम हो जाता है! इन इफ़्तार पार्टियों में रोज़ेदारों के साथ-साथ गैर-रोज़ेदार भी बहुत ही जोश-व-खरोश के साथ शामिल होते हैं! आम लोगों की तरह सियासी गलियारों में इफ़्तार पार्टीयों का दौर शुरू हो जाता है और काफी भव्य अंदाज़ में आयोजित किया जाता है! चाहे सत्तारूढ़ दल हो या विपक्ष, राष्ट्रीय पार्टी हो या क्षेत्रिय दल, एक-सांसदों / विधायकों वाली पार्टी हो बिना सांसद / विधायक वाली पार्टी हर कोई इफ़्तार पार्टी देने में दिलचस्पी दिखाते हैं! पिछले सालों के तरह इस वर्ष भी देश के विभिन्न भागों में ऐसी सियासी इफ़्तार पार्टियाँ आयोजित की गई जिनको अखबारों की सुर्खियों में जगह भी मिलती रही है! अगर बात सिर्फ बिहार की करें तो नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड), लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) आदि ने राजधानी पटना में  भव्य अंदाज़ में इफ़्तार पार्टियों का आयोजन किया! इन हाई-फाई इफ़्तार पार्टियों में राजनीतिज्ञ, राजनीतिक दलों के समर्थकों, समाजसेवीयों के साथ-साथ बड़ी संख्या में आम लोग शामिल हुए! वहीं बिहार से निकलने वाले हर तरह के अखबारों जैसे दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, रोज़नामा सहारा, कौमी तंज़ीम, तासीर आदि में इन इफ़्तार पार्टियों के विभिन्न पलों को तस्वीर के माध्यम से प्रकाशित किया गया! 


हालॉंकि राजनीतिक दलों के दूारा आयोजित इफ्तार पार्टियों को अलग-अलग तरीके से आलोचना लंबे समय से की जाती रही है, और मैं भी इस तरह के भव्य आयोजन का पूरी तरह समर्थक नहीं हूँ! लेकिन अगर इन इफ़्तार पार्टियों के नाम पर खान-पान के नाम पर किए जाने वाले भव्य खर्चे को थोड़ी देर के लिए भुला दिया जाए तो एक आलोचक होने के बावजूद इन इफ्तार पार्टियों की कुछ बातों से काफी प्रभावित होने के लिए मजबूर हो जाता हूँ! खासकर अखबारों में छपी कुछ तस्वीरें काफी प्रभाव छोड़ती हैं जिनमें घोर राजनीतिक मतभेद और प्रतिद्विंदा के बावजूद दो राजनीतिक पार्टियों के मुखिया या उनके नेतागण और कार्यकर्तागण एक दूसरे से गले मिलते दिखते हैं! जहाँ आजकल देश में हर तरफ राजनीति के नाम पर राजनीतिक पार्टियों में घमासान चलता रहता है और ऐसा लगता ही नहीं कि उनके आपसी मतभेद की कोई सीमा या अंत नहीं है इफ़्तार पार्टी के नाम पर कम-से-कम वे एक प्लेटफॉर्म पर आकर सभ्य अंदाज़ में मिलते-जुलते हैं और जोश-व-खरोश के साथ गले हैं! यही नहीं कई बार देखा गया है कि राजनीतिज्ञ अपने सबसे बड़े प्रतिद्वेंदि की तारीफ करने और अच्छे शब्द बोलने से भी गुरेज़ नहीं करते हैं!  वाकई सत्ता के गलियारों में ऐसा नज़ारा हैरान करने के साथ-साथ एक आम हिन्दुस्तानी को सहजता (फील गुड) का एहसास कराता है! 



इफ़्तार पार्टी के नाम पर पॉलिटिकल डिप्लोमेसी किसी हद तक देश में राजनीतिक दावपेंच के जरिए देशवासियों के समक्ष प्रस्तुत किए गए तनाव को बहुत हद तक कम करने में अहम रोल अदा करता है! हालाँकि इस तरह की पॉलिटिकल डिप्लोमेसी को रमज़ान के पवित्र महीने के विभिन्न धार्मिक आयामों और इसकी फ़ज़ीलत से जोड़कर देखने के औचित्य नहीं है, लेकिन फिर भी इफ़्तार पार्टी के बहाने भी अगर कुछ अच्छे पल राजनीतिज्ञों एवं आम लोगों को बिताने के लिए मिलते हैं तो इसे बुरा भी नहीं कहा जा सकता है! मैं यह बताता चलूँ की रमज़ान के महीने (30 दिनों) को तीन अशरे (काल) में विभाजित किया गया हैं जो क्रमशः रहमत (पहले 10 दिन), बरकत (बीच के 10 दिन) और मगफिरत (आखिर के 10 दिन) के कहलाते हैं! इस्लाम धर्म में रोज़े का पवित्र महीने सिर्फ भूखे-प्यासे रहकर अल्लाह तआला की ईबादत तक ही सीमित नहीं है बल्कि इस महीने का एक मुख्य उद्देश्य आपसी कटुता और लड़ाई को समाप्त करके दोस्ती का हाथ बढ़ाना है! यहाँ तक की अगर मुमकिन हो तो इस महीने में बन्दा अपने दुश्मन को भी क्षमा कर सकता है! अंत में एक साकारत्मक सोच के साथ में यह आशा करता हूँ की जिस तरह इफ़्तार पार्टी के वजह से राजनीतिज्ञों एवं सत्ता के गलियारों में सभ्यता और सौहार्दपूर्ण माहौल देखने को मिलता है शायद ऐसे ही लम्हें हमें सालों भर देशभर में देखने को मिलें और भारत एक आदर्श राष्ट्र के रूप में उभरे जहाँ हर कोई अमन-चैन की जिंदगी बिता सकेगा! 
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