Tuesday 19 July 2016

विशेष! माता गुजरी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज (किशनगंज) बिना वेबसाइट के संचालित

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आज के आधुनिक दौर में बिना वेबसाइट का संचालित मेडिकल कॉलेज वास्तव में विश्वसनीय है? हाल में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग UGC ने फर्जी विश्वविद्यालयों का सूची जारी की, समस्त भारत के 22 फर्जी विश्वविद्यालयों में से 8 फर्जी विश्वविद्यालयों वाला राज्य उत्तर प्रदेश शीर्ष पर रहा! इस समाचार ने मेरे ध्यान को मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा स्वीकृत मेडिकल कॉलेजों पर आकर्षित किया और इस दौरान मेरी नज़र अपने मूल राज्य बिहार की, MCI द्वारा स्वीकृत 13 मेडिकल कॉलेजों पर पड़ी। इन कॉलेजों में कौन कौन सी कोर्सेज/पाठ्यक्रम कराई जाती है? क्या इन मेडिकल कॉलेजों में अनुसंधान कार्य या शोध कराई जाती है? ऐसे प्रश्नों का उत्तर तलाशना मेरे रूचि का विषय रहा।


आश्चर्य की बात यह रही कि मेरे द्वारा इस जाँच प्रकरण में मुझे MCI द्वारा स्वीकृत दो ऐसे मेडिकल कॉलेजों की जानकारी मिली जो बगैर वेबसाइट के चल रही है।यह दो कॉलेजों के नाम हैं–“माता गुजरी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, किशनगंज" और “लार्ड बुद्धा कोशी मेडिकल कॉलेज, सहरसा" । दोनों मेडिकल संस्था प्राइवेट हैं। MGM मेडिकल कॉलेज सिख अल्पसंख्यक संस्था है, जो भारत के अतिपिछड़े क्षेत्र एवं बिहार का न्यूनतम साक्षर जिला ‛किशनगंज' में स्थित है, जहाँ 70% मुस्लिम आबादी है। मूलतः किशनगंज निवासी होने के नाते यह बात मेरे लिए किसी पीड़ा से कम नहीं कि जिला का एकमात्र मेडिकल कॉलेज 1990 से अबतक बिना किसी वेबसाइट के चलाई जा रही है।
मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया के भारत राजपत्र दिनांक 03.07.2015 के शर्तों के अनुसार इस बात की साफ़ पुष्टि की गई है कि किसी भी कॉलेज या संस्थान की स्वंय की वेबसाइट प्रत्येक माह के प्रथम सप्ताह में अपडेट की गई या प्रदान की गई निम्नलिखित जानकारियों के साथ होना है
  1. डीन, प्रिंसिपल एवं मेडिकल सुपरिंटेंडेंट का पूर्ण विवरण उनके नाम, योग्यता, टेलीफोन,फैक्स, ई-मेल आदि सहित पूर्ण पता।
  2. शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों का पूर्ण विवरण।
  3. MCI द्वारा स्नातक और स्नातकोत्तर के विभिन्न पाठ्यक्रमों स्वीकृत सीटों का क्षमता विवरण
  4. मेरिट के आधार पर स्नातक और स्नातकोत्तर की पाठ्यक्रम में नामांकित पिछले एवं वर्तमान वर्ष के विद्यार्थियों की सूची।
  5. अंतिम वर्ष तक किसी शोध/रिसर्च प्रकाशन की जानकारी।
  6. विभाग/निकाय या विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किसी अवार्ड या उपलब्द्धि का विवरण।
  7. एफिलिएटेड विश्वविद्यालय एवं इसके उप-कुलपति और रजिस्ट्रारों का विवरण।
  8. अंतिम वर्ष तक सभी परीक्षाओं के परिणामों का सूचना।
  9. सभी पाठ्यक्रमों की स्वीकृति की स्थिति का विवरण।
  10. अस्पताल में क्लीनिकल सामग्रियों का विवरण।


बगैर वेबसाइट की ऐसी कॉलेजें स्पष्ट रूप से MCI द्वारा जारी की गई दिशानिर्देशों खुलेआम उलंघन करती है और ऍम० जी० ऍम० मेडिकल कॉलेज उन कॉलेजों में से एक है। हालांकि MCI, नई दिल्ली द्वारा इस कॉलेज को MBBS की पढाई के लिए 60 सीटों की स्वीकृति प्रदान की गई थी जो अंतिम वर्ष बढ़ाकर 100 सीटें करा दी गई है।

26 वर्षों से बगैर वेबसाइट की चलनेवाली इस संस्थान से आप MCI की लापरवाही और कॉलेज प्रशासन अपारदर्शिता का अंदाजा लगा सकते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि ऐसी संस्था किस प्रकार की डॉक्टर्स तैयार करते हैं, गोरखधंधा के तर्ज पर चलने वाली ऐसी प्राइवेट मेडिकल संस्थाओं से मार्केट और समाज को ऐसे डॉक्टर्स मिल रहे हैं जिसे सटीक शब्दों में कहा जा सकता है “नीम हाकिम खतरे जान"!

शैक्षणिक एवं मेडिकल संस्थाओं की संचालन में बिना किसी अनुभव या कार्यानुभव के कुछ राजनीतिज्ञों एवं व्यापारियों की साँठ गाँठ से कुछ प्राइवेट संस्थाएँ स्थापित की गई है।एम० जी० एम० मेडिकल कॉलेज भी ऐसे कॉलेजों की श्रेणी में आते है जिसका डायरेक्टर श्री० दिलीप जायसवाल उसी क्षेत्र से, भाजपा से विधान पार्षद है और भाजपा के बिहार राज्य का कोषाध्यक्ष भी हैं।

प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में नामांकन के लिए कॉलेज प्रबंधन द्वारा कैंडिडेट से भारी-भड़कम डोनेशन लेना, नामांकन के लिए रिश्वतखोरी, दलालों द्वारा नामांकन के लिए इच्छित अभ्यर्थियों का शोषण सामान्य बात है। डोनेशन के नाम प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों द्वारा अर्जित बेहिसाब काली कमाई, मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य राजनीतिक गतिविधियों में इस्तेमाल के लिए किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार एम० जी० एम० मेडिकल कॉलेज का सालाना टर्नओवर 200 करोड़ से भी अधिक का है, फिर भी इस संस्था के पास एक बुनियादी वेबसाइट तक नहीं, जो आश्चर्यजनक है।

इसके अलावा इस संस्था में चिकित्सीय लापरवाही की बहुत सारे मामले सामने आए; ऑपरेशन थिएटर में रोगियों की मौत, गलत उपचार के कारण रोगी की मौत आदि।संस्था के डायरेक्टर की ऊँची एवं मजबूत राजनीतिक पकड़ के कारण उपरोक्त वर्णन किए गए मामलों पर परिजन पुलिस तक मामला दर्ज नहीं कर पाते या पैसों के बल पर मामला रफा दफा कर दी जाती है।
मैं बिहार के मुख्यमंत्री श्री० नितीश कुमार और केंद्रीय स्वस्थ मंत्री जे० पी० नड्डा का ध्यान इस कॉलेज के द्वारा MCI की गाइडलाइन्स की खुलेआम उलंघन पर आकर्षित करना चाहूँगा। मुझे इस बात की पूरी उम्मीद है कि एम० जी० एम० मेडिकल कॉलेज प्रशासन इस विषय में प्रस्तुत मेरे विचार को संज्ञान में लेंगे और संस्था में पारदर्शिता लाने की मुहीम पर जल्द अमल करेंगे।
लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ़ सोथम्प्टों, ब्रिटेन के फैकल्टी ऑफ़ मेडीसिन के पोस्टडॉक्टरल साइंटिस्ट हैं।
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