Friday 8 July 2016

साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक ईद-उल-फितर और मेरी ईद

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कल ईद-उल-फितर के मौके पर मेरे ऑफिस के कई सहकर्मी मेरे पटना स्तिथ आवास पर ईद-मिलन के लिए आए जिससे इस त्यौहार की खुशियों में कई गुणा बढ़ोतरी हो गई! इस ईद-मिलन की खास बात यह रही की साथ बैठकर स्वादिष्ट व्यंजनों का मज़ा लेने के साथ-साथ धर्म की अच्छाइयों पर बड़े ही अदब के साथ कई पहलुओं विचार-विमर्श हुआ! बेशक त्यौहार में यह एहसास होता है की धार्मिक आस्था का सबसे बड़ा मापदंड इंसानियत है जिसे सिर्फ ईद-उल-फितर पर ही नहीं बल्कि किसी भी धर्म के त्यौहार में एहसास किया जा सकता है! अगर हम त्यौहारों की भावना को आम जिंदगी में भी उतार लें (व्यवहार में लाएं) तो दुनियाभर में साम्प्रदायिक सौहार्द का माहौल कायम कर सकता है और पूरा विश्व एक 'स्वर्ग' जैसा बन सकता है! 

कल इस्लाम मज़हब का सबसे बड़ा त्यौहार ईद-उल-फितर देशभर में हर्ष-व-उल्लास के साथ से मनाया गया! पिछले कई दिनों से ही ईद के त्यौहार को लेकर सिर्फ मुसलमानों में ही नहीं बल्कि दूसरे धार्मिक आस्था के भी लोगों में साम्प्रदायिक सौहार्द के विशेष त्यौहार को लेकर विशेष उत्सुकता थी! जहाँ एक तरफ रमज़ान में अकीदतमंद रोज़ों का एहतमाम कर रहे थे, वहीं इस पवित्र महीने में बाज़ारों में खरीदारी के लिए काफी चहल-पहल थी! खासकर रमज़ान के महीने में आखिर के एक हफ्ते मुसलमान अपने परिवार के साथ ईद की तैयारी के लिए नए कपड़े, सेवईयां, टोपी और ईतर (खुशबू) आदि की खरीदारी में मसगुल रहे और बड़े-बड़े शहरों से गाँव एवं कस्बों के बाज़ारों में रौनक थी! चाँद रात ( ईद-उल-फितर से एक दिन पहले की रात) तो यह चहल-पहल और रौनक कई गुणा बढ़ गई जिसका उल्लेख शब्दों में नहीं किया जा सकता है! इन सबके बीच अगर कुछ सबसे खास रहा तो पवित्र रमज़ान और ईद-उल-फितर के जरिए भारत के साम्प्रदायिक सौहार्द और आपकी भाईचारे का बेहतरीन प्रदर्शन, जिसका अनुभव बखूबी होता है! 



क्यूँकि मैं नौकरी पेशा भारतीय मुसलमान हूँ इसलिए मुझे पढ़ाई के दिनों में स्कूल, कॉलेज एवं यनिवर्सिटी से लेकर ऑफिस तक सहपाठियों एवं सहकर्मियों की अलग-अलग धार्मिक आस्था के बावजूद रमज़ान और ईद-उल-फितर के प्रति विशेष आदर और उत्सुकता देखने को मिली है! जब रोज़े की महीने की शुरुआत होती है तो आपके सहपाठी / सहकर्मी बड़े ही आदर से रोज़ेदारों से इस पवित्र महीने की विशेषताओं के बारे में पूछते हैं! जब भूख-प्यास से आपका मुँह और होंठ सुख जाते हैं तो आपके ऑफिस में काम करने वाला सहकर्मी बड़े ही अदब से पूछता है कि रोज़ा लगा है क्या (रोज़े से परेशानी हो रही क्या)? इस तरह के स्नेह से आपको दिल की गहराईयों से खुशी होती है और आपको धर्म से ज्यादा इंसानियत की भावना का एहसास होता है! वहीं जैसे-जैसे रोज़े का महीना गुजरता है आपके दूसरे धर्मों के मानने वाले लोग काफी दिलचस्पी लेते हुए ईद-उल-फितर के बारे में पूछते हैं! एक मुस्कुराहट के साथ उनके सवालों का जवाब देते हुए आप उन दोस्तों और सहकर्मियों को ईद-उल-फितर के दिन साथ खुशियाँ बाँटने की दावत (आमंत्रण) देते हैं! साथ ही साथ ईद-उल-फितर के दिन बनाई गई सेवइयाँ और दूसरे ज़ायकेदार पकवान ईद मिलन की खुशियाँ कई गुणा बढ़ा देती हैं जिसका मज़ा हर मिल बाँट का लेते हैं! 

बेशक धार्मिक आस्था का सबसे बड़ा स्तर और निचोड़ इंसानियत है, जिसको त्यौहार एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते हैं! और इस इंसानियत और साम्प्रदायिक सौहार्द का बेहतरीन उदहारण रमज़ान और ईद-उल-फितर का त्यौहार है! पिछले सालों की तरह कल भी ईद-उल-फितर के मौके पर भी मेरे ऑफिस के कई सहकर्मी मेरे पटना स्तिथ आवास पर ईद-मिलन के लिए आए जिससे इस त्यौहार की खुशियों में कई गुणा बढ़ोतरी हो गई! मैंने अपने खास अथितियों के बड़ी ही गर्मजोशी से 'ईद मुबारक' बोलकर स्वागत किया, वहीं मेरे सहकर्मिंयों ने भी बहुत ही आकर्षक अंदाज़ में मुझे बधाईयाँ दी! इस ईद-मिलन की खास बात यह रही की साथ बैठकर स्वादिष्ट व्यंजनों का मज़ा लेने के साथ-साथ धर्म की अच्छाइयों पर बड़े ही अदब के साथ कई पहलुओं विचार-विमर्श हुआ! बेशक त्यौहार में यह एहसास होता है की धार्मिक आस्था का सबसे बड़ा मापदंड इंसानियत है जिसे सिर्फ ईद-उल-फितर पर ही नहीं बल्कि किसी भी धर्म के त्यौहार में एहसास किया जा सकता है! और ऐसा एहसास इसलिए होता है क्यूंकि त्यौहार के मिलन समारोह साफ-सुथरे मन के साथ इंसान अपने सच्चे रूप और विलक्षणता के साथ शामिल होता है, जहाँ धार्मिक प्रतिद्विंदता (मतभेद) की कोई जगह नहीं होती है! 

सच कहें तो ऐसा अनुभव सिर्फ मुझे ही नहीं हुआ, बल्कि देश और दुनिया में मेरे जैसे हज़ारों, लाखों मुसलमान हैं जिनको ऐसा अनुभव मिला होगा! ईद-उल-फितर के इस खास मौके पर मुझे यह अहसास हो रहा है कि इस्लामिक त्यौहार और इसकी विशेषताओं को भी सबसे साझा करूँ ताकि सर्वधर्म सहाय वाली भावना हम सब देश वासियों में बढ़े और दुनिया में अमन और चैन का वातावरण कायम हो! आज देश और दुनिया में जाति और धार्मिक आस्था के नाम पर तेज़ी से फैल रही अशांति और आपसी मतभेद को दूर करने के लिए त्यौहारों से हम सबको सबक लेने की ज़रूरत है! अगर हम त्यौहारों की भावना को आम जिंदगी में भी उतार लें (व्यवहार में लाएं) तो दुनियाभर में साम्प्रदायिक सौहार्द का माहौल कायम कर सकता है और पूरा विश्व एक 'स्वर्ग' जैसा बन सकता है! इसलिए "सर्वधर्म सहाय, सर्वजण सुखाय" की भावना अपने अंदर पैदा करने की आवश्यकता है! 
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