Tuesday 6 September 2016

मौलाना असरारुल हक़ की आलोचना समाधान नहीं! बेहतर है जनता खुद विकल्प तलाशें

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मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी पिछले करीब 7 (साढ़े सात) साल से किशनगंज के सांसद हैं और उनके कार्यकाल को लेकर स्थानीय लोगों में मिलीजुली प्रतिक्रिया है! वर्ष 2009 में कांग्रेस की टिकट पर मौलाना क़ासमी की लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद किशनगंज ज़िले के लोगों की आँखों में गज़ब की चमक थी! मौलाना की तारीफ़ में लोगों ने उत्सुकता में उस वक़्त तरह - तरह के क़सीदे पढ़े! लोगों ने यहाँ तक कह दिया कि किशनगंज को दूसरी आजादी मिली है क्योंकि पहली बार कोई सुरजापुरी संसद पहुँचा है! शुरुवाती दो वर्षों तक मौलाना के लिए किशनगंज से लेकर राजधानी दिल्ली और न जाने कितने शहरों में स्वागत समारोह आयोजित किये गए! इसमें कोई बुराई भी नहीं थी क्योंकि मौलाना को लोगों का प्यार पिछले तीन दशकों से मिलता आ रहा था और आख़िरकार सबकी मेहनत उनकी जीत के शक्ल में रंग लाई! 



खैर जब लोग धीरे - धीरे जश्न के दौर से बाहर आए तो मौलाना के काम का आँकलन होने लगा जिससे मिलीजुली प्रतिक्रिया आने लगी! उनके वादों और भाषणों पे लोग विचार करने लगे और पाँच साल के कार्यकाल के पूरा होते - होते उनके समर्थकों की संख्या में कमी आने लगी! फिर वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव आए और देश की बदलती राजनितिक स्तिथि का लाभ मौलाना को हुआ! पिछले चुनावों से सबक लेते हुए कांग्रेस ने राष्ट्रिय जनता दल (आरजेडी) एवं अन्य पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और मौलाना उस गठबंधन के उम्मीदवार चुने गए! वहीँ स्थानीय लोगों के पास भी मुख्य विरोधी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार दिलीप कुमार जयसवाल को जीत से रोकने के लिए एकजुट हो गए! नतीजा यह हुआ कि मौलाना ने चुनाव में करीब 5 लाख के आसपास वोट लाकर बिहार ही नहीं बल्कि देश में रिकॉर्ड बनाया! बेशक 2014 में एक बार फिर मौलाना को संसद जाने का मौका मिला लेकिन दूसरी इनिंग उनके लिए काँटों के ताज से कम नहीं रहा है! जहाँ उनकी पार्टी की सरकार लोकसभा चुनाव में करारी हार बाद केंद्र से चली गई वहीँ स्थानीय लोगों की अपेक्षाएँ भी काफी बढ़ गयी! 

सच कहें तो आज की राजनीती के हिसाब से शायद मौलाना अपने व्यक्तित्व में आवश्यक बदलाव नहीं ला पाए हैं, जिसमे अपने संसदीय छेत्र के विकास के लिए राजनितिक गुटबंदी (political lobbying) अति आवश्यक है! उनकी राजनितिक शैली का सबसे बड़ा खामियाज़ा किशनगंज में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) सेंटर को भुगतना पड़ा है! केंद्र में 2009 से 2014 मई तक उनकी सरकार होते हुए भी वे एक रुपया फण्ड निर्गत (जारी) नहीं करवा पाए! उनकी थोड़ी सी चूक और दूरदृष्टि की वजह से आज एएमयू किशनगंज फण्ड अभाव में कई दिकत्तों से जूझ रहा है! इसी तरह केंद्र सरकार की कई परियोजनाओं जैसे की महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट, जूट मिल आदि को समय पर उनकी सरकार रहते हुए प्रारम्भ नहीं किया जा सका! संक्षेप में कहें तो किशनगंज के लोगों ने मौलाना को लेकर जो सपने देखे या संजोए थे वे चकनाचूर हो गए! 

आज हालात यह हैं कि जहाँ एक तरह समर्थक मौलाना की उपलब्धियों को गिनाते रहते हैं वहीँ उनके काम से असंतुष्ट लोग तरह - तरह से उनकी आलोचना करते रहते हैं! सोशल मीडिया जैसे फेसबुक (Facebook) और व्हाट्सएप्प (WhatsApp) ग्रुप्स में मौलाना के कार्यशैली को लेकर कई तरह की बातें होती हैं! हद तो तब हो जाती है जब कुछ लोग आलोचना करते - करते मर्यादा की सिमा लाँघ जाते हैं, ऐसी बातों को कोई भी सभ्य समाज नहीं सराहेगा! हालाँकि समय - समय पर बुद्धजीवी और अन्य वर्ग के लोग मौलाना पर की गई भद्दी टिप्णी करने वाले लोगों की आलोचना करते हुए मार्गदर्शन करते हैं लेकिन उसपर कोई रोक नहीं लग रही है!

इस बात में कोई दो राय नहीं की आलोचना करना ग़लत है, लेकिन उसके सकारत्मक उद्देश्य होने चाहिए और कहीं भी अभद्रता नहीं झलकनी चाहिए! वहीँ यह भी एक सच्चाई है कि मौलाना की आलोचना करने से किशनगंज के आम नागरिकों की जिम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती है!  वरना आलोचना करते - करते उनके कार्यकाल के बचे हुए ढाई साल यूँही गुज़र जायेंगे और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव आ जायेंगे और फिर एक बार किशनगंज की जनता दुविधा (पशोपेश) में होगी ! अगर लोगों को मौलाना की राजनितिक कार्यशैली पसंद नहीं आती या वे असंतुष्ट हैं तो समय रहते एक बेहतर विकल्प तलाशना उनकी जिम्मेवारी है! 

अंत में विचार को इन शब्दों के साथ विराम दूंगा की बेशक मौलाना का व्यक्तिव एक सज्जन व्यक्ति का है और राजनीती उनके लिए दूसरी प्राथमिकता (priority) है, ऐसा उन्होंने भी अपने भाषणों और आम बातचीत में स्वीकारा है! क्योंकि मौलाना एक महान सख्शियत के मालिक हैं इसलिए उन्हें भी अपने 7 वर्ष से ज्यादा के किशनगंज के सांसद के रूप में कार्यकाल का निष्पक्ष और स्वार्थरहित आकलन करना चाहिए! किशनगंज की बेहतरी के लिए वे चाहें तो राजनितिक विशेषज्ञों और बुद्धजीवियों से सलाह - मश्वरा करके राजनितिक शैली में आवश्यक बदलाव ला सकते हैं, और यह उनकी महानता होगी! 
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