Friday 16 December 2016

मुद्दा : किशनगंज की पत्रकारिता में सांप्रदायिक धुर्वीकरण का बढ़ता चलन...

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किशनगंज की पत्रकारिता में सांप्रदायिक धुर्वीकरण का बढ़ता चलन...और उसपर रोक लगाने का विनर्म निवेदन;


बिहार और देश के उत्तर - पूर्व में स्तिथ किशनगंज ज़िले को 'गंगी - जमनी' तहज़ीब की बेहतरीन मिसाल कहा जाता है और ये अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है! जहाँ क़ुदरत ने इस इलाके को एक अलग ही खूबसूरती से नवाज़ा है, वहीँ यहाँ के निवासी अपने सरल, सादगी भरी ज़िन्दगी एवं स्वभाव से इसकी खूबसूरती में चार-चाँद लगाते हैं! इन सब खूबियों के बावजूद किशनगंज की सबसे बड़ी पहचान यहाँ की 'गंगी - जमनी' तहज़ीब ही जहाँ विभिन्न धर्म, जाति के लोग आपसी मेलजोल से रहते हैं! किशनगंज ज़िले के इसके अलावा कई खूबियां हैं जो सबको आकर्षित करती हैं और ये अपने आप में बेहतरीन मिसाल हैं! सच कहें तो इस इलाके के लोगों की सामाजिक - आर्थिक स्तिथि इतनी अच्छी नहीं है इसलिए केबल टेलीविज़न हर घर में मौजूद नहीं है! देश और दुनिया की ख़बरों को पढ़ने के लिए यहाँ के लोग हिंदी और उर्दू के समाचारपत्र (अख़बार) दिलचस्पी से पढ़ते हैं! 



क्योंकि अख़बारों के प्रति लोगों का लगाव है इसलिए किशनगंज में पत्रकारिता से जुड़े लोग यहाँ के समाज का एक अहम् हिस्सा हैं! यूँ कहें कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानि पत्रकारिता एवं पत्रकार को यहाँ काफी सम्मान दिया जाता है और दिया भी जाना चाहिए! लेकिन बहुत ही दुःख और गौर करने वाली बात है कि पिछले कुछ वर्षों में यहाँ विभिन्न अख़बारों से जुड़े कुछ पत्रकार / स्थानीय संपादक / संवाददाता में धार्मिक आस्था एवं जाति को लेकर पक्षपात वाली भावना देखने को मिली है! अगर सीधे तौर पर  कहा जाए तो कई बार अख़बारों के पत्रकार एक विशेष धार्मिक आस्था और वर्ग को निशाना बनाकर हिन् भावना के साथ खबर लिखते और छापते हैं! धार्मिक आस्था और वर्ग विशेष को निशाना बनाकर लिखे गए ख़बरों की प्रतिक्रिया में पिछले वर्षों में कई छिटपुट घटनाएँ हुई हैं! 

वर्ष 2016 में हद तो तब हो गई जब बिहार और देश के प्रतिष्ठित हिंदी अख़बारों से जुड़े दो वरिष्ठ पत्रकारों ने एक विशेष समुदाय को निशाना बनाते हुए स्थानीय मीडिया बंधुओं द्वारा चलाये जा रहे व्हाट्सएप्प (WhatsApp) पर अभद्र एवं निंदनीय पोस्ट शेयर किये! मामले की गंभीरता को देखते हुए दोनों पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज किया गया और अभी तक केस चल रहे हैं! वहीँ एक हिंदी न्यूज़ चैनल के संवाददाता ने भारतरत्न डॉ० भीम राव  अंबेडकर पर अशोभनीय पोस्ट व्हाट्सएप्प (WhatsApp) पर शेयर किया था और उसे जेल की हवा खानी पड़ी थी! जिस तरह के पोस्ट शेयर किये गए थे उससे एक विशेष समुदाय की धार्मिक आस्था काफी आहत हुई थी और विधि - वयवस्था बिगड़ सकती थी! लेकिन किशनगंज की भोलीभाली और सुलझी जनता ने गंभीरता से मामले पर प्रतिक्रिया व्यक्त किया और हालात सामान्य रहे जो काफी सराहनीय योग्य है! 

यूँ कहा जाए की धार्मिक भावना आहत करने और माहौल बिगाड़ने के उद्देश्य से पत्रकारों के द्वारा शेयर किये पोस्ट का आम जनता ने आपसी भाईचारगी दिखाकर करारा जवाब दिया! अगर देखा जाए तो पिछले कुछ समय में एक-के-बाद-एक ऐसे मामले सामने आये हैं जिनमे धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाने और विधि - वयवस्था को ख़राब करने की कोशिश स्थानीय पत्रकारों द्वारा की गई! और यह भी सच है कि वर्ष 2016 ने ही अकेले ऐसे तीन मामले हो चुके हैं जो आगे भी हो सकते हैं और उसके दुष्परिणाम प्रत्येक सभ्य व्यक्ति और सभ्य समाज को अच्छी तरह मालूम हैं! क्योंकि मैं किशनगंज ज़िले का एक स्थानीय निवासी होने के साथ - साथ पत्रकारिता छेत्र से जुड़ा हुआ हूँ इसलिए मैं ऐसे मामलों की गंभीरता को अच्छी तरह समझता हूँ! पिछले मामलों में शहर के बुद्धजीवियों ने जिला प्रशासन के साथ मिलकर गंभीरता से बैठके एंव फ्लैग-मार्च के जरिए किशनगंज में विधि - वयवस्था को सामान्य बनाये रखने में अहम् भूमिका निभाई! 

लेकिन पत्रकारों के द्वारा किये गए इस तरह की गैरजिम्मेदाराना हरकत से पुरे जिले के लोगों में भय का माहौल देखने को मिलता है! भारतीय लोकतंत्र एवं संविधान के प्रहरी होने के नाते पत्रकारों से निष्पक्ष एवं गंभीर रिपोर्टिंग की अपेक्षा आम जनता रखती है चाहे पत्रकार किसी भी भाषा किसी भी माध्यम के अख़बार एवं टेलीविज़न से जुड़ा हो! एक पत्रकार के एक ग़लत शब्द के इस्तेमाल से पुरे ज़िले ही क्या पुरे देश व दुनिया में अशांति फ़ैल सकती है और इसके दुष्प्रभाव आम जनता को झेलना पड़ सकता है! हाल की वारदातों से सबक लेते हुए किशनगंज के हिंदी एवं उर्दू माध्यम के पत्रकारों से मेरी विनर्म विनती है कि धार्मिक आस्था एवं विवादित मुद्दों की रिपोर्टिंग ध्यानपूर्वक और पूरी जिम्मेवारी से करें वरना इस छेत्र की 'गंगी - जमनी' तहज़ीब को असामाजिक लोग बर्बाद कर सकते हैं! पत्रकारिता का पहला उद्देश्य आम जनता के स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता से उठाना और प्रकाशित करना है! हम सबको पता है की किशनगंज में 'धार्मिक आस्था' कोई मुद्दा ही नहीं है क्योंकि यहाँ के लोग आपस में बहुत ही मिलजुल कर रहते हैं! बेहतर है कि आप 'धार्मिक आस्था' एवं जाति से जुड़े मुद्दों को छोड़कर किशनगंज के अहम् मुद्दों जैसे असाक्षरता, बेरोज़गारी, पेयजल, स्वास्थ्य, आदि को प्रमुखता से उजागर करें जिसके दूरगामी लाभ सिर्फ किशनगंज ही नहीं बल्कि पुरे राज्य एवं देश को होगा । 

जाते - जाते मैं यह बयान करता चलूँ की सरकारी आँकड़ो के मुताबिक किशनगंज की कुल आबादी का 70 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है और बाकि 30 प्रतिशत में हिन्दू, सिख, ईसाई एवं अन्य धर्म के लोग रहते हैं! धार्मिक आस्था में इतनी विविधता होने के बावजूद किशनगंज जिले के लोगों में आपस में काफी प्यार व मोहब्बत से रहते हैं! इस आपसी सौहार्द और भाईचारगी का श्रेय किशनगंज के हर एक निवासी को जाता है जो देश व दुनिया में धर्म और जाति के नाम पर समय - समय पर होने वाली अस्थिरता के बावजूद आपस में मिलजुल कर रहते हैं! किशनगंज के लोग जहाँ सामाजिक परिदृश्य में आपसी भाईचारे की बेहतरीन मिसाल पेश करते हैं वहीँ व्यावसायिक तौर पर बड़ा ही आकर्षक उदहारण देखने को मिलता है! ज्ञात हो कि मुस्लिम बहुल जिला होने के बावजूद किशनगंज के व्यापार का बड़ा हिस्सा दूसरे समुदाय खासकर राजस्थान से पलायन किये हुए मारवाड़ियों के पास है! इन सब तथ्यों के बावजूद किशनगंज में 'विविधता में एकता" की बेहतरीन मिसाल देखने को मिलती है! 

ऊपर लिखे गए तथ्यों के ध्यान में रखते हुए हमें अपने पत्रकार बंधुओं से यह आशा है कि किशनगंज के स्थानीय पत्रकार चाहे किसी धर्म या जाति से संबंध रखते हों अपनी पत्रकारिता में पूरी तरह निष्पक्ष रहेंगे! समाज और संविधान के प्रहरी होने के नाते पत्रकार किशनगंज में धार्मिक आस्था तथा वर्ग विशेष को निशाना बनाकर कोई पोस्ट सोशल मीडिया ग्रुप जैसे व्हाट्सएप्प या फेसबुक पर शेयर नहीं करेंगे और न ही ऐसे समाचार प्रकाशित करेंगे जिससे विधि - व्यवस्था बिगड़ने का खतरा हो! वहीँ आम जनता की भी जिम्मेवारी बनती है की वे पत्रकारों को पूर्ण सहयोग दें और ऐसी किसी भी साज़िश की जानकारी समय पर उनसे और जिला प्रशासन से साझा करें! पत्रकारों एवं आम जनता के आपसी सहयोग और साझा प्रयास से की किशनगंज की 'गंगी - जमनी' तहज़ीब को बरक़रार रखा जा सकता है!   
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